कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 42 प्रेमचन्द की कहानियाँ 42प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बयालीसवाँ भाग
काक- ''जी, मैं आपका नमकख्वार हूँ। आप मुझे अपना गुलाम समझें। मेरे लायक जो काम हो वह बेतकल्लुफ़ फरमाएँ।''
हरबर्ट- ''तुम तो जानते हो मुझे कुत्तों की सूरत से नफ़रत है।''
काक- ''जी हाँ, मैं खूब जानता हूँ। इन्हें देखते ही आपकी रूह काँपने लगती है।''
हरबर्ट- ''खैर, यू ही सही। इस शैतान राबिन ने मेरा नाक में दम कर रखा है। इसे किसी तरह यहाँ से दफ़ा कर दो।''
काक- ''यह क्योंकर हो सकता है?''
हरबर्ट- ''बस जहर दे दो।''
काक- ''अरे हुजूर, यह क्या फरमाते हैं?''
हरबर्ट- ''मैं दस पाउंड दूँगा, समझे।''
काक- ''हुजूर... ''
हरबर्ट- ''अच्छा बीस पाउंड सही।''
काक- ''हुजूर, बहुत मुश्किल काम है।''
हरबर्ट- ''इंकार मत करो। पच्चीस पाउंड मिल जाएँगे।''
इतने में उधर से मिस लैला के चचा को आते देखकर हरबर्ट जल्दी से बाहर चला गया।
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