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प्रेमचन्द की कहानियाँ 42

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9803
आईएसबीएन :9781613015407

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बयालीसवाँ भाग


इसके दो दिन बाद लार्ड हरबर्ट के पास काक गया। लार्ड साहब बहुत उदास मन नज़र आते थे। किसी फ़लसफ़ी का कौल है कि बाज़औक्रात बहुत अधम वाक्यात इंसान की ज़िंदगी में बड़ी-बड़ी तब्दीलियाँ कर देते हैं। लार्ड हरबर्ट की जिन्दगी की आरजुएँ, हौसले और खुशियाँ सब एक मनहूस कुत्ते के हाथों तबाह हुई जाती थीं। इन्हें अपनी कामयाबी में कोई शक बाकी न रहा था। लैला उसकी बातों से कैसी महफूज (निरापद) होती थी। मगर इस राबिन ने सारा ख्वाब परेशान कर दिया। यह क्योंकर मुमकिन था कि इस खौफ़नाक कुत्ते की तेज चमकीली पाँखों के सामने उनकी रुहानी तकरीर जारी रहती। ऐसी हालत में गुफ्तगू का मज़ा किरकिरा हुआ जाता है। काक ने लार्ड साहब के बहुत ताज़ीम (आदर) से सर झुका लिया और कहने लगा- ''हुजूर ने एक काम के लिए मुझे पच्चीस पाउंड देने का वायदा फ़रमाया था।''

लार्ड हरबर्ट का चेहरा खिल उठा। मक़सद बरारी की सूरत निकलती हुई मालूम हुई है। बेसब्री के साथ बोले- ''हाँ-हाँ, मुझे याद है।''

काक- ''मैंने इस मसले पर ग़ौर किया, मगर इसे खतरा से भरा हुआ पाता हूँ। खुदा जाने बाद को क्या हो-कहीं मुआमला खुल जाए तो लेने के देने पड़ जाएँ, इसलिए मैंने एक दूसरी तरक़ीब सोची है कि साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। मेरा एक दोस्त है-राबर्ट। वह ऐसा कारीगर है कि जिस जानवर की सूरत चाहता है, तब्दील कर देता है। ऐसे रंग-रोगन लगाता है कि बड़े-बड़े भी नहीं भाँप सकते। इसके पास राबिन के कद्दोकामात (कद और शरीर) का खूबसूरत कुत्ता है बहुत अच्छा। लड़के इससे खेल करते हैं। इसका रंग इस वक्त सफ़ेद है। मगर राबर्ट कहता है कि मैं इसे बिलकुल राबिन से मिला दूँगा। कोई पहचान न कर खकेगा। बस, जब दूसरा राबिन तैयार हो जाएगा तो असल राबिन को जंजीर में बाँध कर राबर्ट के घर मैं क़ैद कर दूँगा और नक़ली राबिन मिस लैला को दे दिया जाएगा।''

हरबर्ट ने सोचकर जवाब दिया- ''क्या ऐसा मुमकिन है?''

काक- ''हूज़र, मैंने खुद अपनी आखों से राबर्ट को घोड़ों की सूरत तब्दील करते देखा है।''

हरबर्ट- ''मगर लैला पहचान गई तो?''

काक- ''यह सिर्फ़ मुमकिन है, राबर्ट निहायत होशियार आदमी है। बस सिर्फ़ मुआवजा तय हो जाना चाहिए।''

हरबर्ट- 'अगर मेरी खातिरख्वाह (मनोवांछित) काम हो गया तो तुम दोनों को चार-चार पाउंड दूँगा।''

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