कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 42 प्रेमचन्द की कहानियाँ 42प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बयालीसवाँ भाग
दस बजे मदरसा लगता था, किन्तु उस दिन वह आठ बजे ही आ गये और बगीचे में घुसकर उसे उजाड़ने लगे। कहीं पौधे उखाड़ फेंके कहीं क्यारियों को रौंद डाला, पानी की नालियाँ तोड़ डालीं, क्यारियों की मेड़ें खोद डाली। मारे भय के छाती धड़क रही थी कि कहीं कोई देखता न हो। लेकिन एक छोटी सी फुलवाड़ी के उजड़ते कितनी देर लगती है? दस मिनट में हरा-भरा बाग नष्ट हो गया। तब यह लड़के शीघ्रता से निकले, लेकिन दरवाजे तक आए थे कि उन्हें अपने सहपाठी की सूरत दिखाई दी। यह एक-दुबला-पतला, दरिद्र और चतुर लड़का था। उसका नाम बाजबहादुर था। बड़ा गम्भीर, शांत लड़का था। ऊधम पार्टी के लड़के उससे जलते थे। उसे देखते ही उनका रक्त सूख गया। विश्वास हो गया कि इसने जरूर देख लिया। यह मुंशीजी से कहे बिना न रहेगा। बुरे फँसे। आज कुशल नहीं है। यह राक्षस इस समय यहाँ क्या करने आया था? आपस में इशारे हुए कि मिला लेना चाहिए। जगतसिंह उनका मुखिया था। आगे बढ़कर बोला-आज इतने सबेरे कैसे आ गए? हमने तो आज तुमलोगों के गले की फाँसी छुड़ा दी। लाला बहुत दिक किया करते थे, यह करो, वह करो। मगर यार देखो, कहीं मुंशीजी से जड़ मत देना, नहीं तो लेने के देने पड़ जायँगे।
जयराम ने कहा- कह क्या देंगे, अपने ही तो हैं। हमने जो कुछ किया है, वह सबके लिए किया है, केवल अपनी ही भलाई के लिए नहीं। चलो यार, तुम्हें बाजार की सैर करा दें, मुँह मीठा करा दें।
बाजबहादुर ने कहा- नहीं, मुझे आज घर पर पाठ याद करने का अवकाश नहीं मिला। यहीं बैठकर पढ़ूंगा।
जगतसिंह- अच्छा, मुंशीजी से कहोगे तो न?
बाजबहादुर- मैं स्वयं कुछ न कहूँगा, लेकिन उन्होंने मुझसे पूछा तो?
जगतसिंह- कह देना, मुझे नहीं मालूम।
बाजबहादुर- यह झूठ मुझसे न बोला जाएगा।
जयराम- अगर तुमने चुगली खायी और हमारे ऊपर मार पड़ी, तो हम तुम्हें पीटे बिना न छोड़ेंगे।
बाजबहादुर- हमने कह दिया कि चुगली न खायँगे लेकिन मुंशीजी ने पूछा, तो झूठ भी न बोलेंगे।
जयराम- तो हम तुम्हारी हड्डियाँ भी तोड़ देंगे।
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