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प्रेमचन्द की कहानियाँ 42

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9803
आईएसबीएन :9781613015407

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बयालीसवाँ भाग


कल्लू ने भॅवें सिकोड़कर कहा- 'उसे अन्दर मत आने दिया करो। अच्छा आदमी नहीं है।'

मुलिया- 'मैंने कह दिया तमाखू नहीं है, तो चले गये।'

कल्लू ने अबकी तेजस्विता के साथ कहा- 'क्यों झूठ बोलती है? वह तमाखू माँगने नहीं आया था।'

मुलिया- 'तो और यहाँ क्या करने आते?

कल्लू- 'चाहे जिस काम से आया हो, तमाखू माँगने नहीं आया। वह जानता था, मेरे घर में तमाखू नहीं है। मैं तमाखू के लिए उसके घर गया था।'

मुलिया की देह में काटो तो लहू नहीं। चेहरे का रंग उड़ गया। सिर झुकाकर बोली- 'मैं किसी के मन का हाल क्या जानूँ?'

आज तीज का रतजगा था। मुलिया पूजा का सामान कर रही थी; पर इस तरह जैसे मन में जरा भी उत्साह, जरा भी श्रद्धा नहीं है। उसे ऐसा मालूम हो रहा है, उसके मुख में कालिमा पुत गयी है और अब वह कल्लू की आँखों से गिर गयी है। उसे अपना जीवन निराधार-सा जान पड़ता था। सोचने लगी भगवान् ने मुझे यह रूप क्यों दिया? यह रूप न होता तो राजा क्यों मेरे पीछे पड़ता और क्यों आज मेरी यह गत होती? मैं काली-कुरूप रहकर इससे कहीं सुखी रहती। तब तो मन इतना चंचल न होता। जिन्हें रूप की कमाई खानी हो, वह रूप पर फूलें, यहाँ तो इसने मटियामेट कर दिया।

न जाने कब उसे झपकी आ गयी, तो देखती है, कल्लू मर गया है और राजा घर में घुसकर उसे पकड़ना चाहता है। उसी दम एक वृद्धा स्त्री न जाने किधर से आकर उसे अपनी गोद में ले लेती है और कहती है तूने कल्लू को क्यों मार डाला? मुलिया रोकर कहती है माता, मैंने उन्हें नहीं मारा। वृद्धा कहती है- हाँ, तूने छुरी-कटार से नहीं मारा, उस दिन तेरा तप छीन हो गया और इसी से वह मर गया।

मुलिया ने चौकन्नी आँखें खोल दीं। सामने आँगन में कल्लू सोया हुआ था। वह दौड़ी हुई उसके पास गयी और उसकी छाती पर सिर रखकर फूट-फूटकर रोने लगी।

कल्लू ने घबड़ाकर पूछा- 'क़ौन है? मुलिया! क्यों रोती हो? क्या डर लग रहा है। मैं तो जाग ही रहा हूँ।'

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