लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 42

प्रेमचन्द की कहानियाँ 42

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9803
आईएसबीएन :9781613015407

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

222 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बयालीसवाँ भाग


एक दिन कल्लू रात को घर लौटा, तो उसे ज्वर था। दूसरे दिन उसकी देह में दाने निकल आये। मुलिया ने समझा, माता हैं। मान-मनौती करने लगी; मगर चार-पाँच दिन में ही दाने बढ़कर आंवले पड़ गये और मालूम हुआ कि यह माता नहीं हैं; उपदंश है। कल्लू के कलुषित भोग-विलास का यह फल था।

रोग इतनी भयंकरता से बढ़ने लगा कि आंवलों में मवाद पड़ गया और उनमें से ऐसी दुर्गन्ध उड़ने लगी कि पास बैठते नाक फटती थी। देहात में जिस प्रकार का उपचार हो सकता था, वह मुलिया करती थी; पर कोई लाभ न होता था और कल्लू की दशा दिन-दिन बिगड़ती जाती थी। उपचार की कसर वह अबला अपनी स्नेहमय सेवा से पूरी करती थी। उस पर गृहस्थी चलाने के लिए अब मेहनत-मजूरी भी करनी पड़ती थी। कल्लू तो अपने किये का फल भोग रहा था। मुलिया अपने कर्तव्य का पालन करने में मरी जा रही थी। अगर कुछ सन्तोष था, तो यह कल्लू का भ्रम उसकी इस तपस्या से भंग होता जाता था। उसे अब विश्वास होने लगा था कि मुलिया अब भी उसी की है। वह अगर किसी तरह अच्छा हो जाता, तो फिर उसे दिल में छिपाकर रखता और उसकी पूजा करता।

प्रात:काल था। मुलिया ने कल्लू का हाथ-मुँह धुलाकर दवा पिलायी और खड़ी पंखा डुला रही थी कि कल्लू ने आँसू-भरी आँखों से देखकर कहा- 'मुलिया, मैंने उस जन्म में कोई भारी तप किया था कि तू मुझे मिल गयी। तुम्हारी जगह मुझे दुनिया का राज मिले तो भी न लूँ।'

मुलिया ने दोनों हाथों से उसका मुँह बन्द कर दिया और बोली- 'इस तरह की बातें करोगे, तो मैं रोने लगूँगी। मेरे धन्य भाग कि तुम-जैसा स्वामी मिला।' यह कहते हुए उसने दोनों हाथ पति के गले में डाल दिये और लिपट गयी। फिर बोली, 'भगवान् ने मुझे मेरे पापों का दंड दिया है।'

कल्लू ने उत्सुकता से पूछा- 'सच कह दो मूला, राजा और तुममें क्या मामला था?

मुलिया ने विस्मित होकर कहा- 'मेरे और उसके बीच कोई और मामला हुआ हो, तो भगवान् मेरी दुर्गति करें। उसने मुझे चुंदरी दी थी। वह मैंने ले ली थी! फिर मैंने उसे आग में जला दिया। तब से मैं उससे नहीं बोली।'

कल्लू ने ठंडी साँस खींचकर कहा- 'मैंने कुछ और ही समझ रखा था। न-जाने मेरी मति कहाँ हर गयी थी। तुम्हें पाप लगाकर मैं आप पाप में फँस गया और उसका फल भोग रहा हूँ।'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book