कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 44 प्रेमचन्द की कहानियाँ 44प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौवालीसवाँ भाग
देवी- तुझे प्रेम मिल गया?
तारा- नहीं माता, मुझे उससे भी उत्तम पदार्थ मिल गया। मुझे प्रेम के हीरे के बदले सेवा का पारस मिल गया। मुझे ज्ञात हुआ है कि प्रेम सेवा का चाकर है। सेवा के सामने सिर झुकाकर अब मैं प्रेम-भिक्षा नहीं चाहती। अब मुझे किसी दूसरे सुख की अभिलाषा नहीं। सेवा ने मुझे, आदर, सुख सबसेनिवृत्त कर दिया।
देवी इस बार मुस्करायी नहीं। उसने तारा को हृदय से लगाया और दृष्टि से ओझल हो गई।
संध्या का समय था। आकाश में तारे चमकते थे, जैसे कमल पर पानी की बूंदें। वायु में चित्ताकर्षक शीतलता आ गई थी। तारा एक वृक्ष के नीचे खड़ी चिड़ियों को दाना चुगाती थी, कि यकायक साधु ने आकर उसके चरणों पर सिर झुकाया और बोला- तारा, तुमने मुझे जीत लिया। तुम्हारा ऐश्वर्य, धन और सौन्दर्य जो कुछ न कर सका, वह तुम्हारी सेवा ने कर दिखाया। तुमने मुझे अपने प्रेम में आसक्त कर लिया। अब मैं तुम्हारा दास हूँ। बोलो, तुम मुझसे क्या चाहती हो? तुम्हारे संकेत पर अब मैं अपना योग और वैराग्य सब कुछ न्योछावर कर देने के लिए प्रस्तुत हूँ।
तारा- स्वामीजी! मुझे अब कोई इच्छा नहीं। मैं केवल सेवा की आज्ञा चाहती हूँ।
साधु- मैं दिखा दूँगा कि ऐसे योग साधकर मनुष्य का हृदय भी निर्जीव भी नहीं होता। मैं भँवरे के सदृश तुम्हारे सौन्दर्य पर मंडराऊँगा। पपीहे की तरह तुम्हारे प्रेम की रट लगाऊँगा। हम दोनों प्रेम की नौका पर ऐश्वर्य और वैभव की नदी की सैर करेंगे, प्रेम कुंजों में बैठकर प्रेम-चर्चा करेंगे और आनंद के मनोहर राग गाएँगे।
तारा ने कहा- स्वामीजी, सेवा-मार्ग पर चलकर मैं सब अभिलाषाओं से परे हो गई। अब हृदय में और कोई इच्छा शेष नहीं है।
साधु ने इन शब्दों को सुना, तारा के चरणों पर माथा नवाया और गंगा की ओर चल दिया ।
5. सैलानी बंदर
जीवनदास नाम का एक गरीब मदारी अपने बन्दर मन्नू को नचाकर अपनी जीविका चलाया करता था। वह और उसकी स्त्री बुधिया दोनों मन्नू का बहुत प्यार करते थे। उनके कोई सन्तान न थी, मन्नू ही उनके स्नेह और प्रेम का पात्र था दोनों उसे अपने साथ खिलाते और अपने साथ सुलाते थे: उनकी दृष्टि में मन्नू से अधिक प्रिय वस्तु न थी। जीवनदास उसके लिए एक गेंद लाया था। मन्नू आंगन में गेंद खेला करता था। उसके भोजन करने को एक मिट्टी का प्याला था, ओढ़ने को कम्बल का एक टुकड़ा, सोने को एक बोरिया, और उचके के लिए छप्पर में एक रस्सी। मन्नू इन वस्तुओं पर जान देता था। जब तक उसके प्याले में कोई चीज न रख दी जाय वह भोजन न करता था। अपना टाट और कम्बल का टुकड़ा उसे शाल और गद्दे से भी प्यारा था।
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