कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 44 प्रेमचन्द की कहानियाँ 44प्रेमचंद
|
9 पाठकों को प्रिय 242 पाठक हैं |
प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौवालीसवाँ भाग
सबेरा हुआ। गोदावरी घर में नहीं थी। उसकी चारपाई पर यह पत्र पड़ा हुआ था:
‘‘स्वामिन, संसार में सिवाय आपके मेरा और कौन स्नेही था? मैंने अपना सर्वस्व अपने सुख की भेंट कर दिया। अब आपका सुख इसी में है कि मैं इस संसार में लोप हो जाऊँ। इसीलिए ये प्राण आपकी भेंट हैं। मुझसे जो कुछ अपराध हुए हों, क्षमा कीजिएगा। ईश्वर सदा आपको सुखी रक्खे।’’
पण्डितजी इस पत्र को देखते ही मूर्च्छित होकर गिर पड़े। गोमती रोने लगी। पर क्या वे उसके विलाप के आँसू थे?
|