लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 46

प्रेमचन्द की कहानियाँ 46

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :170
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9807
आईएसबीएन :9781613015445

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सैंतालीसवाँ अन्तिम भाग


एक दिन जामिद कई भक्तों के साथ बैठा हुआ कोई पुराण पढ़ रहा था तो क्या देखता है कि सामने सड़क पर एक बलिष्ठ युवक, माथे पर तिलक लगाए, जनेऊ पहने, एक बूढ़े, दुर्बल मनुष्य को मार रहा है। बुढ्ढा रोता है, गिड़गिड़ाता है और पैरों पड़-पड़ के कहता है कि महाराज, मेरा कसूर माफ करो, किन्तु तिलकधारी युवक को उस पर जरा भी दया नहीं आती। जामिद का रक्त खौल उठा। ऐसे दृश्य देखकर वह शांत न बैठ सकता था। तुरंत कूदकर बाहर निकला और युवक के सामने आकर बोला- बुड्ढे को क्यों मारते हो, भाई? तुम्हें इस पर जरा भी दया नहीं आती?

युवक- मैं मारते-मारते इसकी हड्डियाँ तोड़ दूंगा।

जामिद- आख़िर इसने क्या कसूर किया है? कुछ मालूम भी तो हो।

युवक- इसकी मुर्गी हमारे घर में घुस गई थी और सारा घर गंदा कर आई।

जामिद- तो क्या इसने मुर्गी को सिखा दिया था कि तुम्हारा घर गंदा कर आए?

बुड्ढा- ख़ुदाबंद मैं उसे बराबर खाँचे में ढाँके रहता हूँ। आज गफलत हो गई। कहता हूँ, महाराज, कुसूर माफ करो, मगर नहीं मानते। हुजूर, मारते-मारते अधमरा कर दिया।

युवक- अभी नहीं मारा है, अब मारूंगा, खोद कर गाड़ दूंगा।

जामिद- खोद कर गाड़ दोगे, भाई साहब, तो तुम भी यों खड़े न रहोगे। समझ गए? अगर फिर हाथ उठाया, तो अच्छा न होगा।

जवान को अपनी ताकत का नशा था। उसने फिर बुड्ढे को चाँटा लगाया, पर चाँटा पड़ने के पहले ही जामिद ने उसकी गरदन पकड़ ली। दोनों में मल्ल-युद्ध होने लगा। जामिद करारा जवान था। युवक को पटकनी दी, तो वह चारों खाने चित्त गिर गया। उसका गिरना था कि भक्तों का समुदाय, जो अब तक मंदिर में बैठा तमाशा देख रहा था, लपक पड़ा और जामिद पर चारों तरफ से चोटें पड़ने लगीं। जामिद की समझ में न आता था कि लोग मुझे क्यों मार रहे हैं। कोई कुछ न पूछता। तिलकधारी जवान को कोई कुछ नहीं कहता। बस, जो आता है, मुझ ही पर हाथ साफ करता है। आखिर वह बेदम होकर गिर पड़ा। तब लोगों में बातें होने लगीं।

-- दगा दे गया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book