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प्रेमचन्द की कहानियाँ 46

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :170
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9807
आईएसबीएन :9781613015445

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सैंतालीसवाँ अन्तिम भाग


-- धत् तेरी जात की! कभी म्लेच्छों से भलाई की आशा न रखनी चाहिए। कौआ कौओं के साथ मिलेगा। कमीना जब करेगा कमीनापन, इसे कोई पूछता न था, मंदिर में झाड़ू लगा रहा था। देह पर कपड़े का तार भी न था, हमने इसका सम्मान किया, पशु से आदमी बना दिया, फिर भी अपना न हुआ।

-- इनके धर्म का तो मूल ही यही है।

जामिद रात भर सड़क के किनारे पड़ा दर्द से कराहता रहा, उसे मार खाने का दुख न था। ऐसी यातनाएँ वह कितनी बार भोग चुका था। उसे दुख और आश्चर्य केवल इस बात का था कि इन लोगों ने क्यों एक दिन मेरा इतना सम्मान किया और क्यों आज अकारण ही मेरी इतनी दुर्गति की? इनकी वह सज्जनता आज कहाँ गई? मैं तो वही हूँ। मैंने कोई कसूर भी नहीं किया। मैंने तो वही किया, जो ऐसी दशा में सभी को करना चाहिए, फिर इन लोगों ने मुझ पर क्यों इतना अत्याचार किया? देवता क्यों राक्षस बन गए?

वह रात भर इसी उलझन में पड़ा रहा। प्रातःकाल उठ कर एक तरफ की राह ली।

जामिद अभी थोड़ी ही दूर गया था कि वह बुड्ढा उसे मिला। उसे देखते ही बोला-- कसम ख़ुदा की, तुमने कल मेरी जान बचा दी। सुना, जालिमों ने तुम्हें बुरी तरह पीटा। मैं तो मौक़ा पाते ही निकल भागा। अब तक कहाँ थे। यहाँ लोग रात ही से तुमसे मिलने के लिए बेकरार हो रहे हैं। काज़ी साहब रात ही से तुम्हारी तलाश में निकले थे, मगर तुम न मिले। कल हम दोनों अकेले पड़ गए थे। दुश्मनों ने हमें पीट लिया। नमाज का वक्त था, जहाँ सब लोग मस्जिद में थे, अगर जरा भी ख़बर हो जाती, तो एक हजार लठैत पहुँच जाते। तब आटे-दाल का भाव मालूम होता। कसम ख़ुदा की, आज से मैंने तीन कोड़ी मुर्गियां पाली हैं। देखूँ, पंडित जी महाराज अब क्या करते हैं। कसम ख़ुदा की, काज़ी साहब ने कहा है, अगर यह लौंडा जरा भी आँख दिखाए, तो तुम आकर मुझ से कहना। या तो बच्चा घर छोड़कर भागेंगे या हड्डी-पसली तोड़कर रख दी जाएगी।

जामिद को लिए वह बुड्ढा काज़ी जोरावर हुसैन के दरवाज़े पर पहुँचा। काज़ी साहब वजू कर रहे थे। जामिद को देखते ही दौड़कर गले लगा लिया और बोले-- वल्लाह! तुम्हें आँखें ढूंढ़ रही थीं। तुमने अकेले इतने काफ़िरों के दाँत खट्टे कर दिए। क्यों न हो, मोमिन का ख़ून है। काफ़िरों की हक़ीकत क्या? सुना, सब-के-सब तुम्हारी शुद्धि करने जा रहे थे, मगर तुमने उनके सारे मनसूबे पलट दिए। इस्लाम को ऐसे ही ख़ादिमों की जरूरत है। तुम जैसे दीनदारों से इस्लाम का नाम रौशन है। गलती यही हुई कि तुमने एक महीने तक सब्र नहीं किया। शादी हो जाने देते, तब मजा आता। एक नाजनीन साथ लाते और दौलत मुफ़्त। वल्लाह! तुमने उजलत कर दी।

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