कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 46 प्रेमचन्द की कहानियाँ 46प्रेमचंद
|
|
प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सैंतालीसवाँ अन्तिम भाग
‘कभी अवसर मिला, तो जरूर समझाने की चेष्टा करूँगी। पुरुषों की नकेल महिलाओं के हाथ में है! आप किस मुहल्ले में रहते हैं?
‘सआदगंज में।’
‘शुभ नाम?’
‘अमरकान्त।’
युवती ने तुरन्त जरा-सा घूँघट खींच लिया और सिर झुकाकर संकोच और स्नेह से सने स्वर में बोली- आपकी पत्नी तो आपके घर में नहीं है, उसने फरमाइश कैसे की?
अमरकान्त ने चकित होकर पूछा- आप किस मुहल्ले में रहती हैं?
‘घसियारी मण्डी।’
‘आपका नाम सुखदादेवी तो नहीं है?’
‘हो सकता है, इस नाम की कई स्त्रियाँ हैं।’
‘आपके पिता का नाम ज्वालादत्तजी है?’
‘उस नाम के भी कई आदमी हो सकते हैं।’
अमरकान्त ने जेब से दियासलाई निकाली और वहीं सुखदा के सामने उस साड़ी को जला दिया।
सुखदा ने कहा- आप कल आएँगे?
अमरकान्त ने अवरुद्ध कण्ठ से कहा- नहीं सुखदा, जब तक इसका प्रायश्चित न कर लूँगा, न आऊँगा।
सुखदा कुछ और कहने जा रही थी कि अमरकान्त तेजी से कदम बढ़ाकर दूसरी तरफ चले गये।
|