कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
“देवता छाया बना देते
हैं। मनुष्य उसमें रहता है। और मुझ-सी राक्षसी उसमें
आश्रय पाकर भी उसे उजाड़कर ही फेकती है।”
क्या यह मंगला का लिखा
हुआ है? क्षण-भर के लिए सब बातें स्मरण हो आयीं।
मैं नाले में उतरने लगा। वहीं पर यह पत्थर मिला।
“देखते
हैं न बाबूजी!” - इतना कहकर मुरली ने एक बड़ा-सा और कुछ छोटे-छोटे पत्थर
सामने रख दिये। वह फिर कहने लगा- ”इसे घिसकर और भी साफ़ किये जाने पर वही
चित्र दिखाई दे रहा है। एक स्त्री की धुँधली आकृति राक्षसी-सी! यह देखिए,
छुरा है हाथ में, और वह साखू का पेड़ है, और यह हूँ मैं। थोड़ा-सा ही मेरे
शरीर का भाग इसमें आ सका है। यह मेरी जीवनी का आंशिक चित्र है। मनुष्य का
हृदय न जाने किस सामग्री से बना है! वह जन्म-जन्मान्तर की बात स्मरण कर
सकता है, और एक क्षण में सब भूल सकता है; किन्तु जड़ पत्थर-उस पर तो जो
रेखा बन गयी, सो बन गयी। वह कोई क्षण होता होगा, जिसमें अन्तरिक्ष-निवासी
कोई नक्षत्र अपनी अन्तर्भेदिनी दृष्टि से देखता होगा और अपने अदृश्य करों
से शून्य में से रंग आहरण करके वह चित्र बना देता है। इसे जितना घिसिए,
रेखाएँ साफ़ होकर निकलेंगी। मैं भूल गया था। इसने मुझे स्मरण करा दिया। अब
मैं इसे आपको देकर वह बात एक बार ही भूल जाना चाहता हूँ। छोटे पत्थरों से
तो आप बटन इत्यादि बनाइए; पर यह बड़ा पत्थर आपकी चाँदी की पानवाली डिबिया
पर ठीक बैठ जायगा। यह मेरी भेंट है। इसे आप लेकर मेरे मन का बोझ हलका कर
दीजिए।”
मैं कहानी सुनने में
तल्लीन हो रहा था और वह मुरली धीरे
से मेरी आँखों के सामने से खिसक गया। मेरे सामने उसके दिये हुए चित्रवाले
पत्थर बिखरे पड़े रह गये।
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