लोगों की राय

कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां

जयशंकर प्रसाद की कहानियां

जयशंकर प्रसाद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :435
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9810
आईएसबीएन :9781613016114

Like this Hindi book 0

जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ


भयानक स्त्री! मेरा सिर चकराने लगा। मैंने कहा-” आज तो मेरे पैरों में पीड़ा है। मैं उठ नहीं सकता।” उसने मेरा पैर पकड़कर कहा-” कहाँ दुखता है, लाओ मैं दाब दूँ।” मेरे शरीर में बिजली-सी दौड़ गयी। पैर खींचकर कहा- ”नहीं-नहीं, तुम जाओ; सो रहो, कल देखा जायगा।”

“तुम डरते हो न?” - यह कहकर उसने कमर में से छुरा निकाल लिया।

मैंने कहा-” यह क्या?”

“अभी झगड़ा छुड़ाये देती हूँ।” यह कहकर झोपड़ी की ओर चली। मैंने लपककर उसका हाथ पकड़ लिया और कहा- ”आज ठहरो, मुझे सोच लेने दो।”

“सोच लो” - कहकर छुरा कमर में रख, वह झोपड़ी में चली गयी। मैं हवाई हिंडोले पर चक्कर खाने लगा। स्त्री! यह स्त्री है? यही मंगला है, मेरे प्यार की अमूल्य निधि! मैं कैसा मूर्ख था! मेरी आँखों में नींद नहीं। सवेरा होने के पहले ही जब दोनों सो रहे थे, मैं अपने पथ पर दूर भागा जा रहा था।

कई बरस के बाद, जब मेरा मन उस भावना को भुला चुका था, तो धुली हुई शिला के समान स्वच्छ हो गया। मैं उसी पथ से लौटा। नाले के पास नदी की धारा के समीप खड़ा होकर देखने लगा। वह अभी उसी तरह शिला-शय्या पर छटपटा रही थी। हाँ, कुछ व्याकुलता बढ़-सी गयी थी। वहाँ बहुत-से पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े लुढक़ते हुए दिखाई पड़े, जो घिसकर अनेक आकृति धारण कर चुके थे। स्रोत से कुछ ऐसा परिवर्तन हुआ होगा। उनमें रंगीन चित्रों की छाया दिखाई पड़ी। मैंने कुछ बटोरकर उनकी विचित्रता देखी, कुछ पास भी रख लिये। फिर ऊपर चला। अकस्मात् वहीं पर जा पहुँचा, जहाँ पर मेरी झोपड़ी थी। उसकी सब कडिय़ाँ बिखर गयी थीं। एक लकड़ी के टुकड़े पर लोहे की नोक से लिखा था-

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book