कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
विलासिनी
ने बहुत सोच-समझकर अपनी जीवनचर्या बदल डाली। सरकार से मिली हुई जो कुछ
सम्पत्ति थी, उसे बेचकर पास ही के एक गाँव में खेती करने के लिए भूमि लेकर
आदर्श हिन्दू गृहस्थ की-सी तपस्या करने में अपना बिखरा हुआ मन उसने लगा
दिया। उसके कच्चे मकान के पास एक विशाल वट-वृक्ष और निर्मल जल का सरोवर
था। वहीं बैठकर चूड़ीवाली ने पथिकों की सेवा करने का संकल्प किया। थोड़े
ही दिनों में अच्छी खेती होने लगी और अन्न से उसका घर भरा रहने लगा।
भिखारियों को अन्न देकर उन्हें खिला देने में उसे अकथनीय सुख मिलता।
धीरे-धीरे दिन ढलने लगा, चूड़ीवाली को सहेली बनाने के लिए यौवन का तीसरा
पहर करुणा और शान्ति को पकड़ लाया। उस पथ से चलनेवाले पथिकों को दूर से
किसी कला-कुशल कण्ठ की तान सुनाई पड़ती-
अब लौं नसानी अब न
नसैहौं।
वट-वृक्ष
के नीचे एक अनाथ बालक नन्दू को चना और गुड़ की दूकान चूड़ीवाली ने करा दी
है। जिन पथिकों के पास पैसे न होते, उनका मूल्य वह स्वयं देकर नन्दू की
दूकान में घाटा न होने देती, और पथिक भी विश्राम किये बिना उस तालाब से न
जाता। कुछ ही दिनों में चूड़ीवाली का तालाब विख्यात हो गया।
सन्ध्या
हो चली थी। पखेरुओं का बसेरे की ओर लौटने का कोलाहल मचा और वट-वृक्ष में
चहल-पहल हो गई। चूड़ीवाली चरनी के पास खड़ी बैलों को देख रही थी। दालान
में दीपक जल रहा था, अन्धकार उसके घर और मन में बरजोरी घुस रहा था।
कोलाहल-शून्य जीवन में भी चूड़ीवाली को शान्ति मिली, ऐसा विश्वास नहीं
होता था। पास ही उसकी पिण्डुलियों से सिर रगड़ता हुआ कलुआ दुम हिला रहा
था। सुखिया उसके लिए घर में से कुछ खाने को ले आयी थी; पर कलुआ उधर न
देखकर अपनी स्वामिनी से स्नेह जता रहा था। चूड़ीवाली ने हँसते हुए
कहा-”चल, तेरा दुलार हो चुका। जा, खा ले।” चूड़ीवाली ने मन में सोचा,
कंगाल मनुष्य स्नेह के लिए क्यों भीख माँगता है।? वह स्वयं नहीं करता,
नहीं तो तृण-वीरुध तथा पशु-पक्षी भी तो स्नेह करने के लिए प्रस्तुत हैं।
इतने में नन्दू ने आकर कहा-”माँ, एक बटोही बहुत थका हुआ अभी आया है। भूख
के मारे वह जैसे शिथिल हो गया है।”
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