कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
“तूने क्यों नहीं दे
दिया?”
“लेता भी नहीं, कहता है,
तू बड़ा गरीब लडक़ा है, तुझसे न लूँगा।”
चूड़ीवाली
वट-वृक्ष की ओर चल पड़ी। अँधेरा हो गया था। पथिक जड़ का सहारा लेकर लेटा
था। चूड़ीवाली ने हाथ जोड़कर कहा-”महाराज, आप कुछ भोजन कीजिए।”
“तुम कौन हो?”
“पहले की एक वेश्या।”
“छि:,
मुझे पड़े रहने दो, मैं नहीं चाहता कि तुम मुझसे बोलो भी, क्योंकि
तुम्हारा व्यवसाय कितने ही सुखी घरों को उजाड़कर श्मशान बना देता है।”
“महाराज,
हम लोग तो कला के व्यवसायी हैं। यह अपराध कला का मूल्य लगानेवालों की
कुरुचि और कुत्सित इच्छा का है। संसार में बहुत-से निर्लज्ज स्वार्थपूर्ण
व्यवसाय चलते हैं। फिर इसी पर इतना क्रोध क्यों?”
“क्योंकि वह उन सबों में
अधम और निकृष्ट है।”
“परन्तु
वेश्या का व्यवसाय करके भी मैंने एक ही व्यक्ति से प्रेम किया था। मैं और
धर्म नहीं जानती, पर अपने सरकार से जो कुछ मुझे मिला, उसे मैं लोक-सेवा
में लगाती हूँ। मेरे तालाब पर कोई भूखा नहीं रहने पाता। मेरी जीविका चाहे
जो रही हो, मेरे अतिथि-धर्म में बाधा न दीजिए।”
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