कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
|
0 |
जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
”जेल में! जब कुछ लोग
खेल-तमाशा देखते ही हैं, तो मैं क्यों न दिखाकर मां
की दवा करूं और अपना पेट भरूं।”
मैंने दीर्घ नि:श्वास
लिया। चारों ओर बिजली के लट्टू नाच रहे थे। मन
व्यग्र हो उठा। मैंने उससे कहा, ”अच्छा चलो, निशाना लगाया जाए।”
हम दोनों उस जगह पर
पहुंचे, जहां खिलौने को गेंद से गिराया जाता था। मैंने
बारह टिकट खरीदकर उस लड़के को दिए।
वह
निकला पक्का निशानेबाज। उसकी कोई गेंद खाली नहीं गयी। देखनेवाले दंग रह
गए। उसने बारह खिलौनों को बटोर लिया, लेकिन उठता कैसे? कुछ मेरी रूमाल में
बंधे, कुछ जेब में रख लिए गए।
लड़के ने कहा, ”बाबूजी,
आपको तमाशा
दिखाऊंगा। बाहर आइए, मैं चलता हूं।” वह नौ-दो ग्यारह हो गया। मैंने
मन-ही-मन कहा, ”इतनी जल्दी आंख बदल गई।”
मैं घूमकर पान की दुकान
पर आ गया। पान खाकर बड़ी देर तक इधर-उधर टहलता देखता रहा। झूले के पास
लोगों का ऊपर-नीचे आना देखने लगा। अकस्मात् किसी ने ऊपर के हिंडोले से
पुकारा, ”बाबूजी!”
मैंने पूछा, ”कौन?”
”मैं हूँ छोटा जादूगर।”
कलकत्ते
के सुरम्य बोटैनिकल-उद्यान में लाल कमलिनी से भरी हुई एक छोटी-सी झील के
किनारे घने वृक्षों की छाया में अपनी मण्डली के साथ बैठा हुआ मैं जलपान कर
रहा था। बातें हो रही थीं। इतने में वही छोटा जादूगर दिखाई पड़ा। हाथ में
चारखाने का खादी का झोला, साफ जाँघिया और आधी बाँहों का कुरता। सिर पर
मेरी रूमाल सूत की रस्सी से बँधी हुई थी। मस्तानी चाल में झूमता हुआ आकर
वह कहने लगा।
|