कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
जहाँआरा- औरंगजेब! तुम
यहाँ कैसे?
औरंगजेब-
(पलटकर अपने लड़के की तरफ देखकर) बेटा! मालूम होता है कि बादशाहआलम-बेगम
का कुछ दिमाग बिगड़ गया है, नहीं तो इस बेशर्मी के साथ इस जगह पर न आतीं।
तुम्हें इनकी हिफाजत करनी चाहिये।
जहाँआरा- और औरंगजेब के
दिमाग को क्या हुआ है, जो वह अपने बाप के साथ
बेअदबी से पेश आया..
अभी
इतना उसके मुँह से निकला ही था कि शाहजादे ने फुरती से उसके हाथ से कटार
निकाल लिया और कहा- मैं अदब के साथ कहता हूँ कि आप महल में चलें, नहीं
तो..
जहाँआरा से यह देखकर न
रहा गया। रमणी-सुलभ वीर्य और अस्त्र,
क्रन्दन और अश्रु का प्रयोग उसने किया और गिड़गिड़ाकर औरंगजेब से बोली-
क्यों औरंगजेब! तुमको कुछ भी दया नहीं है?
औरंगजेब ने कहा- दया
क्यों नहीं है बादशाह-बेगम! दारा जैसे तुम्हारा भाई
था, वैसा ही मैं भी तो भाई ही था, फिर तरफदारी क्यों?
जहाँआरा- वह तो बाप का
तख्त नहीं लिया चाहता था, उनके हुक्म से सल्तनत का
काम चलाता था।
ओरंगजेब- तो क्या मैं वह
काम नहीं कर सकता? अच्छा, बहस की जरूरत नहीं है।
बेगम को चाहिये कि वह महल में जायँ।
जहाँआरा कातर दृष्टि से
वृद्ध मूर्च्छित पिता को देखती हुई शाहजादे की
बताई राह से जाने लगी।
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