कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
यमुना के किनारे एक महल
में शाहजहाँ पलँग पर पड़ा है, और जहाँआरा उसके
सिरहाने बैठी हुई है।
जहाँआरा
से जब औरंगजेब ने पूछा कि वह कहाँ रहना चाहती है, तब उसने केवल अपने वृद्ध
और हतभागे पिता के साथ रहना स्वीकार किया, और अब वह साधारण दासी के वेश
में अपना जीवन अभागे पिता की सेवा में व्यतीत करती है।
वह
भड़कदार शाही पेशवाज अब उसके बदन पर नहीं दिखायी पड़ती, केवल सादे वस्त्र
ही उसके प्रशान्त मुख की शोभा बढ़ाते हैं। चारों ओर उस शाही महल में एक
शान्ति दिखलाई पड़ती है। जहाँआरा ने, जो कुछ उसके पास थे, सब सामान गरीबों
को बाँट दिये; और अपने निज के बहुमूल्य अलंकार भी उसने पहनना छोड़ दिया।
अब वह एक तपस्विनी ऋषिकन्या-सी हो गयी! बात-बात पर दासियों पर वह झिडक़ी
उसमें नहीं रही। केवल आवश्यक वस्तुओं से अधिक उसके रहने के स्थान में और
कुछ नहीं है।
वृद्ध शाहजहाँ ने
लेटे-लेटे आँख खोलकर कहा- बेटी,अब
दवा की कोई जरूरत नहीं है, यादे-खुदा ही दवा है। अब तुम इसके लिये मत
कोशिश करना।
जहाँआरा ने रोकर कहा-
पिता, जब तक शरीर है, तब तक उसकी रक्षा करनी ही
चाहिये।
शाहजहाँ कुछ न बोलकर
चुपचाप पड़े रहे। थोड़ी देर तक जहाँआरा बैठी रही; फिर
उठी और दवा की शीशियाँ यमुना के जल में फेंक दीं।
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