कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
“यह मेरा प्रश्न है। इस
निर्जन निशीथ में जब सत्व विचरते हैं,
दस्यु घूमते हैं, तुम यहाँ कैसे?” गम्भीर कर्कश कण्ठ से आगन्तुक ने पूछा।
सुकुमारी
बालिका सत्वों और दस्युओं का स्मरण करते ही एक बार काँप उठी। फिर सम्हल कर
बोली- “मेरी वह नितान्त आवश्यकता है। वह मुझे भय ही सही, तुम कौन हो?”
“एक साहसिक-”
“साहसिक और दस्यु तो
क्या, सत्व भी हो, तो उसे मेरा काम करना होगा।”
“बड़ा साहस है! तुम्हें
क्या चाहिए, सुन्दरी? तुम्हारा नाम क्या है?”
“वनलता!”
“बूढ़े वनराज, अन्धे
वनराज की सुन्दरी बालिका वनलता?”
“हाँ।”
“जिसने मेरा अनिष्ट करने
में कुछ भी उठा न रखा, वही वनराज!” क्रोध-कम्पित
स्वर से आगन्तुक ने कहा।
“मैं नहीं जानती, पर क्या
तुम मेरी याचना पूरी करोगे?”
शीतल प्रकाश में लम्बी
छाया जैसे हँस पड़ी और बोली- “मैं तुम्हारा
विश्वस्त अनुचर हूँ। क्या चाहती हो, बोलो?”
“पिताजी के लिए
ज्योतिष्मती चाहिये।”
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