कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
वनलता की इन बातों को
बिना सुने हुए वह बलिष्ठ युवक अपनी तलवार की मूँठ
दृढ़ता से पकड़ कर वनस्पति की ओर अग्रसर हुआ।
बालिका
छटपटा कर कहने लगी- ”हाँ-हाँ, छूना मत, पिता जी की आँखें, आह!” तब तक
साहसिक लम्बी छाया ने ज्योतिष्मती पर पड़ती हुई चन्द्रिका को ढँक लिया। वह
एक दीर्घ निश्वास फेंककर जैसे सो गई। बिजली के फूल मेघ में विलीन हो गये।
चन्द्रमा खिसककर पश्चिमी शैल-माला के नीचे जा गिरा।
वनलता-झंझावात से भग्न
होते हुए वृक्ष की वनलता के समान वसुधा का आलिंगन
करने लगी और साहसिक युवक के ऊपर कालिमा की लहर टकराने लगी।
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