कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
सरदार
अपने कार्य में व्यस्त रहते थे। उन्हें सन्ध्या को चबूतरे पर बैठकर
रामप्रसाद के दो-एक गाने सुनने का नशा हो गया था। जिस दिन गाना नहीं
सुनते, उस दिन उनको वारुणी में नशा कम हो जाता - उनकी विचित्र दशा हो जाती
थी। रामप्रसाद ने एक दिन अपने पूर्व-परिचित सरोवर पर जाने के लिए छुट्टी
माँगी; मिल भी गई।
सन्ध्या को सरदार चबूतरे
पर नहीं बैठे, महल में चले गये। उनकी स्त्री ने
कहा-आज आप उदास क्यों हैं?
सरदार- रामप्रसाद के गाने
में मुझे बड़ा ही सुख मिलता है।
सरदार-पत्नी- क्या आपका
रामप्रसाद इतना अच्छा गाता है जो उसके बिना आपको
चैन नहीं? मेरी समझ में मेरी बाँदी उससे अच्छा गा सकती है।
सरदार- (हँसकर) भला! उसका
नाम क्या है?
सरदार-पत्नी- वही, सौसन -
जिसे में देहली से खरीदकर ले आई हूँ।
सरदार- क्या खूब! अजी,
उसको तो मैं रोज देखता हूँ। वह गाना जानती होती, तो
क्या मैं आज तक न सुन सकता।
सरदार-पत्नी- तो इसमें
बहस की कोई जरूरत नहीं है। कल उसका और रामप्रसाद का
सामना कराया जावे।
सरदार- क्या हर्ज।
आज
उस छोटे-से उद्यान में अच्छी सज-धज है। साज लेकर दासियाँ बजा रही हैं।
'सौसन' संकुचित होकर रामप्रसाद के सामने बैठी है। सरदार ने उसे गाने की
आज्ञा दी। उसने गाना आरम्भ किया-
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