कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
कहो री, जो कहिबे की होई।
बिरह बिथा अन्तर की वेदन
सो जाने जेहि होई।।
ऐसे कठिन भये पिय प्यारे
काहि सुनावों रोई।
'सूरदास' सुखमूरि मनोहर
लै जुगयो मन गोई।।
कमनीय
कामिनी-कण्ठ की प्रत्येक तान में ऐसी सुन्दरता थी कि सुननेवाले
बजानेवाले-सब चित्र लिखे-से हो गये। रामप्रसाद की विचित्र दशा थी, क्योंकि
सौसन के स्वाभाविक भाव, जो उसकी ओर देखकर होते थे - उसे मुग्ध किये हुए
थे।
रामप्रसाद गायक था,
किन्तु रमणी-सुलभ भ्रू-भाव उसे नहीं आते थे। उसकी
अन्तरात्मा ने उससे धीरे-से कहा कि 'सर्वस्व हार चुका'!
सरदार ने कहा- रामप्रसाद,
तुम भी गाओ। वह भी एक अनिवार्य आकर्षण से -
इच्छा न रहने पर भी, गाने लगा।
हमारो हिरदय कलिसहु
जीत्यो।
फटत न सखी अजहुँ उहि आसा
बरिस दिवस पर बीत्यो।।
हमहूँ समुझि पर्यो नीके
कर यह आसा तनु रीत्यो।
'सूरस्याम' दासी सुख
सोवहु भयउ उभय मन चीत्यो।
सौसन
के चेहरे पर गाने का भाव एकबारगी अरुणिमा में प्रगट हो गया। रामप्रसाद ने
ऐसे करुण स्वर से इस पद को गाया कि दोनों मुग्ध हो गये।
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