कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
दोनों ओर जवाहारात, जरी
कपड़ों, बर्तन तथा सुगन्धित
द्रव्यों की सजी हुई दूकानों से; देश-विदेश के व्यापारियों की भीड़ और
बीच-बीच में घोड़े के रथों से, बनारस की पत्थर से बनी हुई चौड़ी गलियाँ
अपने ढंग की निराली दिखती थीं। प्राचीरों से घिरा हुआ नगर का प्रधान भाग
त्रिलोचन से लेकर राजघाट तक विस्तृत था। तोरणों पर गांगेय देव के सैनिकों
का जमाव था। कन्नौज के प्रतिहार सम्राट् से काशी छीन ली गई थी। त्रिपुरी
उस पर शासन करती थी। ध्यान से देखने पर यह तो प्रकट हो जाता था कि
नागरिकों में अव्यवस्था थी। फिर भी ऊपरी काम-काज, क्रय-विक्रय, यात्रियों
का आवागमन चल रहा था।
फिरोज़ा कमख्वाब देख रही
थी और नियाल्तगीन
मणि-मुक्ताओं की ढेरी से अपने लिए अच्छे-अच्छे नग चुन रहा था। पास ही
दोनों दूकानें थीं! बलराज बीच में खड़ा था। अन्यमनस्क फिरोज़ा ने कई थान
छाँट लिये थे। उसने कहा- बलराज! देखो तो, इन्हें तुम कैसा समझते हो, हैं न
अच्छे? उधर से नियाल्तगीन ने पूछा- कपड़े देख चुकी हो, तो इधर आओ। इन्हे
भी देख न लो! फिरोज़ा उधर जाने लगी थी कि दुकानदार ने कहा- लेना न देना,
झूठ-मूठ तंग करना। कभी देखा तो नहीं। कंगालों की तरह जैसे आँखों से देख कर
ही खा जायगी। फिरोज़ा घूम कर खड़ी हो गई। उसने पूछा- क्या बकते हो?-जा-जा
तुर्किस्तान के जंगलों में भेड़ चरा। इन कपड़ों का लेना तेरा काम नहीं -
सटी हुई दूकानों से जौहरी अभी कुछ बोलना ही चाहता था कि बलराज ने कहा- चुप
रह, नहीं तो जीभ खींच लूँगा।
ओहो! तुर्की ग़ुलाम का
दास, तू भी
....। अभी इतना ही कपड़े वाले के मुँह से निकला था कि नियाल्तगीन की तलवार
उसके गले तक पहुँच गई। बाज़ार में हलचल मची। नियाल्तगीन के साथी इधर-उधर
बिखरे ही थे। कुछ तो वहीं आ गये। औरों को समाचार मिल गया। झगड़ा बढऩे लगा,
नियाल्तगीन को कुछ लोगों ने घेर लिया था; किन्तु तुर्कों ने उसे छीन लेना
चाहा। राजकीय सैनिक पहुँच गये। नियाल्तगीन को यह मालूम हो गया कि पड़ाव पर
समाचार पहुँच गया है। उसने निर्भीकता से अपनी तलवार घुमाते हुए कहा- अच्छा
होता कि झगड़ा यहीं तक रहता, नहीं तो हम लोग तुर्क हैं।
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