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जयशंकर प्रसाद की कहानियां

जयशंकर प्रसाद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :435
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9810
आईएसबीएन :9781613016114

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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ


चलो बाबा, झोपड़ी में, सर्दी लगती है - यह छोटी-सी बालिका अपने बाबा को जैसे इस तरह बातें करते हुये देखना नहीं चाहती थी। वह संकोच में डूबी जा रही थी। देवनिवास चुप था। बुड्ढे को जैसे तमाचा लगा। वह अपने दयनीय और घृणित भिक्षा-व्यवसाय को बहुधा नीरा से छिपाकर, बनाकर कहता। उसे अखबार सुनाता। और भी न जाने क्या-क्या ऊँची-नीची बातें बका करता; नीरा जैसे सब समझती थी! वह कभी बूढ़े से प्रश्न नहीं करती थी। जो कुछ वह कहता, चुपचाप सुन लिया करती थी। कभी-कभी बुड्ढा झुँझला कर चुप हो जाता, तब भी वह चुप रहती। बूढ़े को आज ही नीरा ने झोपड़ी में चलने के लिए कहकर पहले-पहल मीठी झिडक़ी दी। उसने सोचा कि अठन्नी पाने पर भी अखबार माँगना नीरा न सह सकी। अच्छा तो बाबूजी, भगवान् यदि कोई हों, तो आपका भला करें— बुड्ढा लडक़ी का हाथ पकड़कर मौलसिरी की ओर चला। देवनिवास सन्न था।

अमरनाथ ने अपनी साइकिल के उज्ज्वल आलोक में देखा; नीरा एक गोरी-सी, सुन्दरी, पतली-दुबली करुणा की छाया थी। दोनों मित्र चुप थे। अमरनाथ ने ही कहा— अब लौटोगे कि यहीं गड़ गये! तुमने कुछ सुना, अमरनाथ! वह कहता था— भगवान यदि कोई हों—कितना भयानक अविश्वास!

देवनिवास ने साँस लेकर कहा। दरिद्रता और लगातार दु:खों से मनुष्य अविश्वास करने लगता है, निवास! यह कोई नयी बात नहीं है— अमरनाथ ने चलने की उत्सुकता दिखाते हुए कहा। किन्तु देवनिवास तो जैस आत्मविस्मृत था। उसने कहा— सुख और सम्पत्ति से क्या ईश्वर का विश्वास अधिक होने लगता है? क्या मनुष्य ईश्वर को पहचान लेता है? उसकी व्यापक सत्ता को मलिन वेष में देखकर दुरदुराता नहीं—ठुकराता नहीं, अमरनाथ! अबकी बार ‘आलोचक’ के विशेषांक में तुमने लौटे हुए प्रवासी कुलियों के सम्बन्ध में एक लेख लिखा था न! वह सब कैसे लिखा था? अखबारों के आँकड़े देखकर। मुझे ठीक-ठीक स्मरण है। कब, किस द्वीप से कौन-कौन स्टीमर किस तारीख में चले। ‘सतलज’, ‘पण्डित’ और ‘एलिफैण्टा’ नाम के स्टीमरों पर कितने-कितने कुली थे, मुझे ठीक-ठीक मालूम था, और? और वे सब कहाँ हैं? सुना है, इसी कलकत्ते के पास कहीं मटियाबुर्ज है, वही अभागों का निवास है।

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