कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
अवध के नवाब का विलास या
प्रायश्चित्त-भवन भी तो
मटियाबुर्ज ही रहा। मैंने उस लेख में भी एक व्यंग इस पर बड़े मार्के का
दिया है। चलो, खड़े-खड़े बातें करने की जगह नहीं। तुमने तो कहा था कि आज
जनाकीर्ण कलकत्ते से दूर तुमको एक अच्छी जगह दिखाऊँगा। यहीं...। यही
मटियाबुर्ज है। —देवनिवास ने बड़ी गम्भीरता से कहा। और अब तुम कहोगे कि वह
बुड्ढा वहीं से लौटा हुआ कोई कुली है। हो सकता है, मुझे नहीं मालूम।
अच्छा, चलो अब लौटें। —कहकर अमरनाथ ने अपनी साइकिल को धक्का दिया।
देवनिवास
ने कहा—चलो उसकी झोपड़ी तक, मैं उससे कुछ बात करूँगा। अनिच्छापूर्वक ‘चलो’
कहते हुए अमरनाथ ने मौलसिरी की ओर साइकिल घुमा दी। साइकिल के तीव्र आलोक
में झोपड़ी के भीतर का दृश्य दिखाई दे रहा था। बुड्ढा मनोयोग से लाई फाँक
रहा था और नीरा भी कल की बची हुई रोटी चबा रही थी। रूखे ओठों पर दो-एक
दाने चिपक गये थे, जो उस दरिद्र मुख में जाना अस्वीकार कर रहे थे। लुक
फेरा हुआ टीन का गिलास अपने खुरदरे रंग का नीलापन नीरा की आँखों में
उँड़ेल रहा था। आलोक एक उज्ज्वल सत्य है, बन्द आँखों में भी उसकी सत्ता
छिपी नहीं रहती। बुड्ढे ने आँखे खोल कर दोनों बाबुओं को देखा। वह बोल उठा—
बाबूजी! आप अखबार देने आये हैं? मैं अभी पथ्य ले रहा था; बीमार हूँ न, इसी
से लाई खाता हूँ, बड़ी नमकीन होती है। अखबार वाले को कभी-कभी नमकीन बातों
का स्वाद दे देते हैं! इसी से तो, बेचारे कितनी दूर-दूर की बातें सुनते
हैं। जब मैं ‘मोरिशस’ में था, तब हिन्दुस्तान की बातें पढ़ा करता था। मेरा
देश सोने का है, ऐसी भावना जग उठी थी। अब कभी-कभी उस टापू की बातें पढ़
पाता हूँ, तब यह मिट्टी मालूम पड़ता है; पर सच कहता हूँ बाबूजी, ‘मोरिशस’
में अगर गोली न चली होती और ‘नीरा’ की माँ न मरी होती...हाँ, गोली से ही
वह मरी थी... तो मैं अब तक वहीं से जन्मभूमि का सोने का सपना देखता; और इस
अभागे देश! नहीं-नहीं बाबूजी, मुझे यह कहने का अधिकार नहीं। मैं हूँ
अभागा! हाय रे भाग!! ‘नीरा’ घबरा उठी थी।
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