कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
|
0 |
जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
बुड्ढा,
न जाने क्यों काँप उठा। साइकिल का तीव्र आलोक उसके विकृत मुख पर पड़ रहा
था। बुड्ढे का सिर धीरे-धीरे नीचे झुकने लगा। नीरा चौंक उठी और एक फटा-सा
कम्बल उस बुड्ढे को ओढ़ाने लगी। सहसा बुड्ढे ने सिर उठाकर कहा— मैं इसे
मान लेता हूँ कि आपके पास बड़ी अच्छी युक्तियाँ हैं और वर्तमान दशा का
कारण आप मुझे ही प्रमाणित कर सकते हैं। किन्तु वृक्ष के नीचे पुआल से ढँकी
हुई मेरी झोपड़ी को और उसमें पड़े हुए अनाहार, सर्दी और रोगों से जीर्ण
मुझ अभागे को मेरा ही भ्रम बताकर आप किसी बड़े भारी सत्य का आविष्कार कर
रहे हैं, तो कीजिए।
जाइए, मुझे क्षमा कीजिए।
देवनिवास कुछ बोलने
ही वाला था कि नीरा ने दृढ़ता से कहा— आप लोग क्यों बाबा को तंग कर रहे
हैं? अब उन्हें सोने दीजिए। निवास ने देखा कि नीरा के मुख पर आत्मनिर्भरता
और सन्तोष की गम्भीर शान्ति है। स्त्रियों का हृदय अभिलाषाओं का, संसार के
सुखों का, क्रीड़ास्थल हैं; किन्तु नीरा का हृदय, नीरा का मस्तिष्क इस
किशोर अवस्था में ही कितना उदासीन और शान्त है। वह मन-ही-मन नीरा के सामने
प्रणत हुआ।
दोनों मित्र उस झोपड़ी से
निकले। रात अधिक बीत चली
थी। वे कलकत्ता महानगरी की घनी बस्ती में धीरे-धीरे साइकिल चलाते हुए
घुसे। दोनों का हृदय भारी था। वे चुप थे। देवनिवास का मित्र कच्चा नागरिक
नहीं था। उसको अपने आँकड़ों का और उनके उपयोग पर पूरा विश्वास था। वह सुख
और दु:ख, दरिद्रता और विभव, कटुता और मधुरता की परीक्षा करता। जो उसके काम
के होते, उन्हें सम्हाल लेता; फिर अपने मार्ग पर चल देता। सार्वजनिक जीवन
का ढोंग रचने में वह पूरा खिलाड़ी था। देवनिवास के आतिथ्य का उपभोग करके
अपने लिए कुछ मसाला जुटाकर वह चला गया। किन्तु निवास की आँखों में, उस
रात्रि में बूढ़े की झोपड़ी का दृश्य, अपनी छाया ढालता ही रहा। एक सप्ताह
बीतने पर वह फिर उसी ओर चला। झोपड़ी में बुड्ढा पुआल पर पड़ा था। उसकी
आँखें कुछ बड़ी हो गई थीं, ज्वर से लाल थीं। निवास को देखते ही एक रुग्ण
हँसी उसके मुँह पर दिखाई दी। उसने धीरे से पूछा— बाबूजी, आज फिर.....।
|