कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
“यह काश्मीर की रहनेवाली
है। इसका नाम नूरी है। बहुत अच्छा नाचती
है।”—सुलताना ने कहा।
“मैंने तो कभी नहीं
देखा।”
“तो देखिए न।”
“नूरी? तू इसी शहनाई की
गत पर नाच सकेगी?”
“क्यों नहीं, जहाँपनाह!”
गोटें
अपने-अपने घर में जहाँ-की-तहाँ बैठी रहीं। नूरी का वासना और उन्माद से भरा
हुआ नृत्य आरम्भ हुआ। उसके नूपुर खुले हुए बोल रहे थे। वह नाचने लगी, जैसे
जलतरंग। वागीश्वरी के विलम्बित स्वरों में अंगों के अनेक मरोड़ों के बाद
जब कभी वह चुन-चुनकर एक-दो घुँघुरू बजा देती, तब अकबर “वाह! वाह!” कह
उठता। घड़ी-भर नाचने के बाद जब शहनाई बन्द हुई, तब अकबर ने उसे बुलाकर
कहा—”नूरी! तू कुछ चाहती है?”
“नहीं, जहाँपनाह!”
“कुछ भी?”
“मैं अपनी माँ को देखना
चाहती हूँ। छुट्टी मिले, तो!”—सिर नीचे किये हुए
नूरी ने कहा।
“दुत् — और कुछ नहीं।”
“और कुछ नहीं।”
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