कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
“अच्छा, तो जब मैं काबुल
चलने लगूँगा, तब तू भी वहाँ चल सकेगी।”
फिर
गोटें चलने लगीं। खेल होने लगा। सुलताना और शंहशाह दोनों ही इस चिन्ता में
थे कि दूसरा हारे। यही तो बात है, संसार चाहता है कि तुम मेरे साथ खेलो;
पर सदा तुम्हीं हारते रहो। नूरी फिर गोट बन गयी थी। अब की वही फिर पिटी।
उसने कहा—”मैं मर गयी।”
अकबर ने कहा—”तू अलग जा
बैठ।”
छुट्टी
पाते ही थकी हुई नूरी पचीसी के समीप अमराई में जा घुसी। अभी वह नाचने की
थकावट से अँगड़ाई ले रही थी। सहसा याकूब ने आकर उसे पकड़ लिया। उसके शिथिल
सुकुमार अंगों को दबाकर उसने कहा—”नूरी, मैं तुम्हारे प्यार को लौटा देने
के लिए आया हूँ।”
व्याकुल होकर नूरी ने
कहा— ”नहीं, नहीं, ऐसा न करो।”
“मैं आज मरने-मारने पर
तुला हूँ।”
“तो क्या फिर तुम आज उसी
काम के लिए....”
“हाँ नूरी!”
“नहीं, शाहजादा याकूब!
ऐसा न करो। मुझे आज शांहशाह ने काश्मीर जाने की
छुट्टी दे दी है। मैं तुम्हारे साथ भी चल सकती हूँ।”
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