कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
|
0 |
जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
युवती ने हाथ जोड़कर कहा-
आप लोग दु:ख मत दीजिये। फिर उसने
एक-एक करके अपने सब आभूषण उतार दिये और वे दुष्ट उन सब अलंकारों को लेकर
भाग गये। इधर वह स्त्री निद्रा से क्लान्त होकर उसी वृक्ष के नीचे सो गयी।
उधर देखिये, वह एक रथ चला
जा रहा है, और उसके पर्दे हटाकर बता रहे
हैं कि उसमें स्त्री और पुरुष तीन-चार बैठे हैं। पर सारथी उस ऊँची-नीची
पथरीली भूमि में भी उन लोगों की ओर बिना ध्यान दिये रथ शीघ्रता से लिये जा
रहा है। सूर्य की किरणें पश्चिम में पीली हो गयी हैं। चारों ओर उस पथ में
शान्ति है। केवल उसी रथ का शब्द सुनाई पड़ता है, जो अभी उत्तर की ओर चला
जा रहा है।
थोड़ी ही देर में वह रथ
सरोवर के समीप पहुँचा और रथ
के घोड़े हाँफते हुए थककर खड़े हो गये। अब सारथी भी कुछ न कर सका और उसको
रथ के नीचे उतरना पड़ा।
रथ को रुका जानकर भीतर से
एक पुरुष निकला और उसने सारथी से पूछा- क्यों,
तुमने रथ क्यों रोक दिया?
सारथी- अब घोड़े नहीं चल
सकते।
पुरुष- तब तो फिर बड़ी
विपत्ति का सामना करना होगा; क्योंकि पीछा करने
वाले उन्मत्त सैनिक आ ही पहुँचेंगे।
सारथी-
तब क्या किया जाय? (सोचकर) अच्छा, आप लोग इस समीप की कुटी में चलिये, यहाँ
कोई महात्मा हैं, वह अवश्य आप लोगों को आश्रय देंगे।
पुरुष ने कुछ सोचकर सब
आरोहियों को रथ पर से उतारा, और वे सब लोग उसी कुटी
की ओर अग्रसर हुए।
|