कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
कुटी
के बाहर एक पत्थर पर अधेड़ मनुष्य बैठा हुआ है। उसका परिधेय वस्त्र
भिक्षुओं के समान है। रथ पर के लोग उसी के सामने जाकर खड़े हुए। उन्हें
देखकर वह महात्मा बोले- आप लोग कौन हैं और क्यों आये हैं?
उसी
पुरुष ने आगे बढक़र, हाथ जोड़कर कहा- महात्मन्-हम लोग जैन हैं और महाराज
अशोक की आज्ञा से जैन लोगों का सर्वनाश किया जा रहा है। अत: हम लोग प्राण
के भय से भाग कर अन्यत्र जा रहे हैं। पर मार्ग में घोड़े थक गये, अब ये इस
समय चल नहीं सकते। क्या आप थोड़ी देर तक हम लोगों को आश्रय दीजियेगा?
महात्मा थोड़ी देर सोचकर
बोले- अच्छा, आप लोग इसी कुटी में चले जाइये।
स्त्री-पुरुषों ने आश्रय
पाया।
अभी
उन लोगों को बैठे थोड़ी ही देर हुई है कि अकस्मात् अश्व-पद-शब्द ने सबको
चकित और भयभीत कर दिया। देखते-देखते दस अश्वारोही उस कुटी के सामने पहुँच
गये। उनमें से एक महात्मा की ओर लक्ष्य करके बोला- ओ भिक्षु, क्या तूने
अपने यहाँ भागे हुए जैन विधर्मियों को आश्रय दिया है? समझ रख, तू हम लोगों
से बहाना नहीं कर सकता, क्योंकि उनका रथ इस बात का ठीक पता दे रहा है।
महात्मा-
सैनिको, तुम उन्हें लेकर क्या करोगे? मैंने अवश्य उन दुखियों को आश्रय
दिया है। क्यों व्यर्थ नर-रक्त से अपने हाथों को रंजित करते हो?
सैनिक अपने साथियों की ओर
देखकर बोला- यह दुष्ट भी जैन ही है, ऊपरी बौद्ध
बना हुआ है; इसे भी मारो।
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