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			 कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
    “हाँ, यही तो!” 
    
    “अच्छा, तुम यहाँ महलों
      में जाती होगी।” 
    
    “महल! हाँ, महलों की
      दीवारें तो खड़ी हैं।” 
    
    “तब तुम नहीं जानती होगी।
      उसका भी नाम नूरी था! वह काश्मीर की रहने वाली
      थी।” 
    
    “उससे आपको क्या काम
      है?”—मन-ही-मन काँप कर नूरी ने पूछा। 
    
    “मिले
      तो कह देना कि एक अभागे ने तुम्हारे प्यार को ठुकरा दिया था। वह काश्मीर
      का शाहजादा था। पर अब तो भिखमंगे से भी....” कहते-कहते उसकी आँखों से आँसू
      बहने लगे। नूरी ने उसके आँसू पोंछकर पूछा—”क्या अब भी उससे मिलने का मन
      करता है?” 
    
    वह सिसककर कहने लगा—”मेरा
      नाम याकूब खाँ है। मैंने
      अकबर के सामने तलवार उठायी और लड़ा भी। जो कुछ मुझसे हो सकता था, वह
      काश्मीर के लिए मैंने किया। इसके बाद विहार के भयानक तहखाने में बेड़ियों
      से जकड़ा हुआ कितने दिनों तक पड़ा रहा। सुना है कि सुल्तान सलीम ने वहाँ
      के अभागों को फिर से धूप देखने के लिए छोड़ दिया है। मैं वहीं से ठोकरें
      खाता हुआ चला आ रहा हूँ। हथकड़ियों से छूटने पर किसी अपने प्यार करनेवाले
      को देखना चाहता था। इसी से सीकरी चला आया। देखता हूँ कि मुझे वह भी न
      मिलेगा।” 
    			
		  			
						
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