कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
चन्द्रदेव
की इस प्रकृति से ऊबकर उसकी पत्नी मालती प्राय: अपनी माँ के पास अधिक रहने
लगी; किन्तु जब लौटकर आती, तो गृहस्थी में उसी कृत्रिम वैराग्य का अभिनय
उसे खला करता। चन्द्रदेव ग्यारह बजे तक दूकान का काम देखकर, गप लड़ाकर,
उपदेश देकर और व्याख्यान सुनाकर जब घर में आता, तब एक बड़ी दयनीय
परिस्थिति उत्पन्न होकर उस साधारणत: सजे हुए मालती के कमरे को और भी मलिन
बना देती। फिर तो मालती मुँह ढँककर आँसू गिराने के अतिरिक्त और कर ही क्या
सकती थी? यद्यपि चन्द्रदेव का बाह्य आचरण उसके चरित्र के सम्बन्ध में सशंक
होने का किसी को अवसर नहीं देता था, तथापि मालती अपनी चादर से ढँके हुए
अन्धकार में अपनी सौत की कल्पना करने के लिए स्वतन्त्र थी ही।
वह धीरे-धीरे रुग्णा हो
गयी।
एक
दिन चन्द्रदेव के पास बैठने वालों ने सुना कि वह कहीं बाहर जानेवाला है।
दूसरे दिन चन्द्रदेव की स्त्री-भक्ति की चर्चा छिड़ी। सब लोग कहने
लगे-”चन्द्रदेव कितना उदार, सहृदय व्यक्ति है। स्त्री के स्वास्थ्य के लिए
कौन इतना रुपया खर्च करके पहाड़ जाता है। कम-से-कम ... नगर में तो कोई भी
नहीं।”
चन्द्रदेव ने बहुत
गम्भीरता से मित्रों में कहा- ”भाई,
क्या करूँ, मालती को जब यक्ष्मा हो गया है, तब तो पहाड़ लिवा जाना
अनिवार्य है। रुपया-पैसा तो आता-जाता रहेगा।” सब लोगों ने इसका समर्थन
किया।
चन्द्रदेव पहाड़ चलने को
प्रस्तुत हुआ। विवश होकर मालती को
भी जाना ही पड़ा। लोक-लाज भी तो कुछ है। और जब कि सम्मानपूर्वक पति अपना
कर्तव्य पालन कर रहा हो तो स्त्री अस्वीकार कैसे कर सकती?
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