कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
'इसे भी मारो' का शब्द
गूँज उठा, और देखते-देखते उस महात्मा का सिर भूमि
में लोटने लगा।
इस काण्ड को देखते ही
कुटी के स्त्री-पुरुष चिल्ला उठे। उन नर-पिशाचों ने
एक को भी न छोड़ा! सबकी हत्या की।
अब
सब सैनिक धन खोजने लगे। मृत स्त्री-पुरुषों के आभूषण उतारे जाने लगे। एक
सैनिक, जो उस महात्मा की ओर झुका था, चिल्ला उठा। सबका ध्यान उसी ओर
आकर्षित हुआ। सब सैनिकों ने देखा, उसके हाथ में एक अँगूठी है, जिस पर लिखा
है, 'वीताशोक'!
महाराज अशोक के भाई,
जिनका पता नहीं लगता था, वही
'वीताशोक' मारे गये! चारों ओर उपद्रव शान्त है। पौण्ड्रवर्धन नगर प्रशान्त
समुद्र की तरह हो गया है।
महाराज अशोक पाटलिपुत्र
के
साम्राज्य-सिंहासन पर विचारपति होकर बैठे हैं। राजसभा की शोभा तो कहते
नहीं बनती। सुवर्ण-रचित बेल-बूटों की कारीगरी से, जिनमें मणि-माणिक्य
स्थानानुकूल बिठाये गये हैं। मौर्य-सिंहासन-मडन्दर भारतवर्ष का वैभव दिखा
रहा है, जिसे देखकर पारसीक सम्राट 'दारा' के सिंहासन-मन्दिर को ग्रीक लोग
तुच्छ दृष्टि से देखते थे।
धर्माधिकारी,
प्राड्विवाक, महामात्य,
धर्म-महामात्य रज्जुक, और सेनापति, सब अपने-अपने स्थान पर स्थित हैं।
राजकीय तेज का सन्नाटा सबको मौन किये है।
देखते-देखते एक स्त्री
और एक पुरुष उस सभा में आये। सभास्थित सब लोगों की दृष्टि को पुरुष के
अवनत तथा बड़े-बड़े नेत्रों ने आकर्षित कर लिया। किन्तु सब नीरव हैं। युवक
और युवती ने मस्तक झुकाकर महाराजा को अभिवादन किया।
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