कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
पगली नहीं, यदि वही होती,
तो इतनी विचार-वेदना क्यों होती? सेनापति! मुझे
बाँध लो। राजा के पास ले चलो।
क्या है, स्पष्ट कह!
श्रावस्ती का दुर्ग एक
प्रहर में दस्युओं के हस्तगत हो जायेगा। दक्षिणी
नाले के पार उनका आक्रमण होगा।
सेनापति चौंक उठे।
उन्होंने आश्चर्य से पूछा- तू क्या कह रही है?
मैं सत्य कह रही हूँ;
शीघ्रता करो।
सेनापति
ने अस्सी सैनिकों को नाले की ओर धीरे-धीरे बढ़ने की आज्ञा दी और स्वयं बीस
अश्वारोहियों के साथ दुर्ग की ओर बढ़े। मधूलिका एक अश्वारोही के साथ बाँध
दी गई।
श्रावस्ती का दुर्ग, कोशल
राष्ट्र का केन्द्र, इस रात्रि
में अपने विगत वैभव का स्वप्न देख रहा था। भिन्न राजवंशों ने उसके
प्रान्तों पर अधिकार जमा लिया है। अब वह केवल कई गाँवों का अधिपति है। फिर
भी उसके साथ कोशल के अतीत की स्वर्ण-गाथाएँ लिपटी हैं। वही लोगों की
ईर्ष्या का कारण है। जब थोड़े से अश्वारोही बड़े वेग से आते हुए
दुर्ग-द्वार पर रुके, तब दुर्ग के प्रहरी चौंक उठे। उल्का के आलोक में
उन्होंने सेनापति को पहचाना, द्वार खुला। सेनापति घोड़े की पीठ से उतरे।
उन्होंने कहा-अग्निसेन! दुर्ग में कितने सैनिक होंगे?
सेनापति की जय हो! दो सौ
।
उन्हें
शीघ्र ही एकत्र करो; परन्तु बिना किसी शब्द के। सौ को लेकर तुम शीघ्र ही
चुपचाप दुर्ग के दक्षिण की ओर चलो। आलोक और शब्द न हों।
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