कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
साहस करके पथिक आगे बढऩे
लगा।
दृष्टि काम नहीं देती थी, हाथ-पैर अवसन्न थे। फिर भी चलता गया। विरल
छाया-वाले खजूर-कुञ्ज तक पहुँचते-पहुँचते वह गिर पड़ा। न जाने कब तक अचेत
पड़ा रहा।
एक पथिक पथ भूलकर वहाँ
विश्राम कर रहा था। उसने जल के
छींटे दिये। एकान्तवासी चैतन्य हुआ। देखा, एक मनुष्य उसकी सेवा कर रहा है।
नाम पूछने पर मालूम हुआ-”सेवक।”
“तुम कहाँ जाओगे?”-उसने
पूछा।
“संसार से घबराकर एकान्त
में जा रहा हूँ।”
“और मैं एकान्त से घबराकर
संसार में जाना चाहता हूँ।”
“क्या एकान्त में कुछ सुख
नहीं मिला?”
“सब सुख था-एक दु:ख, पर
वह बड़ा भयानक दु:ख था। अपने सुख को मैं किसी से
प्रकट नहीं कर सकता था, इससे बड़ा कष्ट था।”
“मैं उस दु:ख का अनुभव
करूँगा।”
“प्रार्थना करता हूँ,
उसमें न पड़ो।”
“तब क्या करूँ?”
“लौट चलो; हम लोग बातें
करते हुए जीवन बिता देंगे!”
“नहीं, तुम अपनी बातों
में विष उगलोगे।”
“अच्छा, जैसी तुम्हारी
इच्छा।”
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