कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
दोनों
विश्राम करने लगे। शीतल पवन ने सुला दिया। गहरी नींद लेने पर जागे। एक
दूसरे को देखकर मुस्कराने लगे। सेवक ने पूछा-”आप तो इधर से आ रहे हैं,
कैसा पथ है?”
“निर्जन मरुभूमि।”
“तब तो मैं न जाऊँगा; नगर
की ओर लौट जाऊँगा। तुम भी चलोगे?”
“नहीं, इस खजूर-कुञ्ज को
छोड़कर मैं नहीं जाऊँगा। तुमसे बोलचाल कर लेने पर
और लोगों से मिलने की इच्छा जाती रही। जी भर गया।”
“अच्छा, तो मैं जाता हूँ।
कोई काम हो, तो बताओ, कर दूँगा।”
“मेरा! मेरा कोई काम
नहीं।”
“सोच लो।”
“नहीं, वह तुमसे न होगा।”
“देखूँगा, सम्भव है, हो
जाय।”
“लूनी नदी के उस पार
रामनगर के जमींदार की एक सुन्दर कन्या है; उससे कोई
संदेश कह सकोगे?”
“चेष्टा करूँगा। क्या
कहना होगा?”
“तीन
बरस से तुम्हारा जो प्रेमी निवार्सित है, वह खजूर-कुञ्ज में विश्राम कर
रहा है। तुमसे एक चिह्न पाने की प्रत्याशा में ठहरा है। अब की बार वह
अज्ञात विदेश में जायगा। फिर लौटने की आशा नहीं है।”
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