कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
“मैं समझ गया, इसका मूल्य
परिश्रम से अधिक है।
तो चलो, अबकी दोनों की सेवा करके इसका मूल्य पूरा कर दूँ परन्तु दया करके
इसे मेरे ही पास रहने दो। जिन्हें विदेश जाना है, उनको नौका की यात्रा
बड़ी सुखद होती है।”- कहकर एक बार उसने झोपड़ी की ओर देखा। बुढिय़ा मर
चुकी थी। ख़ाली झोपड़ी की ओर से उसने मुँह फिरा लिया। डाँडे जल में गिरा
दिये।
रमणी ने कहा- ”चलो,
यात्रा तो करनी ही है, बैठ जायँ।”
एकान्तवासी हँस पड़ा।
दोनों नाव पर बैठ गये। नाव धारा में बहने लगी। रमणी
ने हँसकर पूछा- ”केवल देखोगे या खेओगे भी?”
“नाव स्वयं बहेगी; मैं
केवल देखूँगा ही।”
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