कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
पर
यह नशा दो-ही-तीन बरसों में उखड़ गया। इस अर्थयुग में सब सम्बल जिसका है,
वही उठ्ठी बोल गया। आज ब्रजराज अकिञ्चन कंगाल था। आज ही से उसे भीख माँगना
चाहिए। नौकरी न करेगा, हाँ भीख माँग लेगा। किसी का काम कर देगा, तो यह
देगा वह अपनी भीख। उसकी मानसिक धारा इसी तरह चल रही थी।
वह सवेरे
ही आज मन्दिर के समीप ही जा बैठा। आज उसके हृदय से भी वैसी ही एक ज्वाला
भक् से निकल कर बुझ जाती है। और कभी विलम्ब तक लपलपाती रहती है; किन्तु
कभी उसकी ओर कोई नहीं देखता। और उधर तो यात्रियों के झुण्ड जा रहे थे।
चैत्र
का महीना था। आज बहुत-से यात्री आये थे। उसने भी भीख के लिए हाथ फैलाया।
एक सज्जन गोद में छोटा-सा-बालक लिये आगे बढ़ गये, पीछे एक सुन्दरी अपनी
ओढ़नी सम्हालती हुई क्षणभर के लिए रुक गयी थी। स्त्रियाँ स्वभाव की कोमल
होती हैं। पहली ही बार पसारा हुआ हाथ ख़ाली न रह जाय, इसी से ब्रजराज ने
सुन्दरी से याचना की।
वह खड़ी हो गयी। उसने
पूछा- ”क्या तुम अब लारी नहीं चलाते?”
अरे, वही तो ठीक मालती
का-सा स्वर!
हाथ बटोरकर ब्रजराज ने
कहा- ”कौन, मालो?”
“तो यह तुम्हीं हो,
ब्रजराज!”
“हाँ तो”- कहकर ब्रजराज
ने एक लम्बी साँस ली।
मालती खड़ी रही। उसने
कहा- ”भीख माँगते हो?”
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