कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
“हाँ,
पहले मैं सुख का भिखारी था। थोड़ा-सा मिन्ना का स्नेह, इन्दो का प्रणय,
दस-पाँच बीघों की कामचलाऊ उपज और कहे जानेवाले मित्रों की चिकनी-चुपड़ी
बातों से सन्तोष की भीख माँगकर अपने चिथड़ों में बाँधकर मैं सुखी बन रहा
था। कंगाल की तरह जन-कोलाहल से दूर एक कोने में उसे अपनी छाती से लगाये
पड़ा था; किन्तु तुमने बीच में थोड़ा-सा प्रसन्न-विनोद मेरे ऊपर ढाल दिया,
वही तो मेरे लिए...”
“ओहो, पागल इन्दो! मुझ पर
सन्देह करने लगी।
तुम्हारे चले आने पर मुझसे कई बार लड़ी भी। मैं तो अब यहाँ आ गयी हूँ।”-
कहते-कहते वह भय से आगे चले जानेवाले सज्जन को देखने लगी।
“तो, वह तुम्हारा ही
बच्चा है न! अच्छा-अच्छा!”
‘हूँ’ कहती हुई मालो ने
कुछ निकाला उसे देने के लिए!
ब्रजराज
ने कहा- ”मालो! तुम जाओ। देखो, वह तुम्हारे पति आ रहे हैं!” बच्चे को गोद
में लिये हुए मालो के पंजाबी पति लौट आये। मालती उस समय अन्यमनस्क,
क्षुब्ध और चञ्चल हो रही थी। उसके मुँह पर क्षोभ, भय और कुतूहल से मिली
हुई करुणा थी। पति ने डाँटकर पूछा- ”क्यों, वह भिखमंगा तंग कर रहा था?”
पण्डाजी की ओर घूमकर मालो
के पति ने कहा- ”ऐसे उच्चकों को आप लोग मन्दिर
के पास बैठने देते हैं।”
धनी जजमान का अपमान वह
पण्डा कैसे सहता! उसने ब्रजराज का हाथ पकड़कर
घसीटते हुए कहा-
“उठ बे, यहाँ फिर दिखाई
पड़ा, तो तेरी टाँग ही लँगड़ी कर दूँगा!”
बेचारा
ब्रजराज यहाँ धक्के खाकर सोचने लगा- ”फिर मालती! क्या सचमुच मैंने कभी
उससे कुछ....और मेरा दुर्भाग्य! यही तो आज तक अयाचित भाव से वह देती आयी
है। आज उसने पहले दिन की भीख में भी वही दिया।
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