कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
बालक- (कुछ सोचकर) मदन।
युवक- नाम तो बड़ा अच्छा
है। अच्छा, कहो, तुम क्या खाओगे? रसोई बनाना
जानते हो?
बालक- रसोई बनाना तो नहीं
जानते। हाँ, कच्ची-पक्की जैसी हो, बनाकर खा लेते
हैं, किन्तु ..
अच्छा, संकोच करने की कोई
जरूरत नहीं है-इतना कहकर युवक ने पुकारा- कोई
है?
एक नौकर दौड़कर आया-
हुजूर, क्या हुक्म है?
युवक ने कहा- इनको भोजन
कराने के लिए ले जाओ।
भोजन के उपरान्त बालक
युवक के पास आया। युवक ने एक घर दिखाकर कहा कि उस
सामने की कोठरी में सोओ और उसे अपने रहने का स्थान समझो।
युवक
की आज्ञा के अनुसार बालक उस कोठरी में गया, देखा तो एक साधारण-सी चौकी
पड़ी है; एक घड़े में जल, लोटा और गिलास भी रक्खा हुआ है। वह चुपचाप चौकी
पर लेट गया।
लेटने पर उसे बहुत-सी
बातें याद आने लगीं, एक-एक
करके उसे भावना के जाल में फँसाने लगीं। बाल्यावस्था के साथी, उनके साथ
खेल-कूद, राम-रावण की लड़ाई, फिर उस विजया-दशमी के दिन की घटना, पड़ोसिन
के अंग में तीर का धँस जाना, माता की व्याकुलता, और मार्ग के कष्ट को
सोचते-सोचते उस भयातुर बालक की विचित्र दशा हो गयी।
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