कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
मृणालिनी गृहस्वामी की
कन्या है। वह देवबाला-सी जान
पड़ती है। बड़ी-बड़ी आँखें, उज्ज्वल कपोल, मनोहर अंगभंगी, गुल्फविलम्बित
केश-कलाप उसे और भी सुन्दरी बनने में सहायता दे रहे हैं। अवस्था तेरह वर्ष
की है; किन्तु वह बहुत गम्भीर है।
नित्य साथ होने से दोनों
में
अपूर्व भाव का उदय हुआ है। बालक का मुख जब आग की आँच से लाल तथा आँखें
धुएँ के कारण आँसुओं से भर जाती हैं, तब बालिका आँखों में आँसू भर कर,
रोष-पूर्वक पंखी फेंककर कहती है- लो जी, इससे काम लो, क्यों व्यर्थ
परिश्रम करते हो? इतने दिन तुम्हें रसोई बनाते हुए, मगर बनाना न आया!
तब
मदन आँच लगने के सारे दु:ख को भूल जाता। तब उसकी तृष्णा और बढ़ जाती; भोजन
रहने पर भी भूख सताती है। और, सताया जाकर भी वह हँसने लगता है। मन-ही-मन
सोचता, मृणालिनी! तुम बंग-महिला क्यों हुईं?
मदन के मन में यह
बात क्यों उत्पन्न हुई? दोनों सुन्दर थे, दोनों ही किशोर थे, दोनों संसार
से अनभिज्ञ थे, दोनों के हृदय में रक्त था-उच्छ्वास था-आवेग था-विकास था,
दोनों के हृदय-सिन्धु में किसी अपूर्व चन्द्र का मधुर-उज्जवल प्रकाश पड़ता
था, दोनों के हृदय-कानन में नन्दन-पारिजात खिला था!
जिस परिवार
में बालक मदन पलता था, उसके मालिक हैं अमरनाथ बनर्जी। आपके नवयुवक पुत्र
का नाम है किशोरनाथ बनर्जी, कन्या का नाम मृणालिनी और गृहिणी का नाम
हीरामणि है। बम्बई और कलकत्ता, दोनों स्थानों में, आपकी दूकानें थीं,
जिनमें बाहरी चीजों का क्रय-विक्रय होता था; विशेष काम मोती के बनिज का
था। आपका आफिस सीलोन में था; वहॉँ से मोती की खरीद होती थी। आपकी कुछ जमीन
भी वहॉँ थी। उससे आपकी बड़ी आय थी। आप प्राय: अपनी बम्बई की दूकान में और
आपका परिवार कलकत्ते में रहता था। धन अपार था, किसी चीज की कमी न थी। तो
भी आप एक प्रकार से चिन्तित थे।
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