कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
|
0 |
जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
संसार में कौन
चिन्ताग्रस्त
नहीं है? पशु-पक्षी, कीट-पतंग, चेतन और अचेतन, सभी को किसी प्रकार की
चिन्ता है। जो योगी हैं, जिन्होंने सब कुछ त्याग दिया है, संसार जिनके
वास्ते असार है, उन्होंने भी स्वीकार किया है। यदि वे आत्मचिन्तन न करें,
तो उन्हें योगी कौन कहेगा?
किन्तु बनर्जी महाशय की
चिन्ता का कारण क्या है? सो पति-पत्नी की इस
बातचीत से ही विदित हो जायगा-
अमरनाथ- किशोर तो क्वाँरा
ही रहा चाहता है। अभी तक उसकी शादी कहीं पक्की
नहीं हुई।
हीरामणि- सीलोन में आपके
व्यापार करने तथा रहने से समाज आपको दूसरी ही
दृष्टि से देख रहा है।
अमरनाथ-
ऐसे समाज की मुझे परवाह नहीं है। मैं तो केवल लडक़ी और लड़के का ब्याह
अपनी जाति में करना चाहता था। क्या टापुओं में जाकर लोग पहले बनिज नहीं
करते थे? मैंने कोई अन्य धर्म तो ग्रहण नहीं किया, फिर यह व्यर्थ का
आडम्बर क्यों है? और, यदि, कोई खान-पान का दोष दे, तो क्या यहाँ पर तिलक
कर पूजा करने वाले लोगों से होटल बचा हुआ है?
हीरामणि- फिर क्या
कीजियेगा? समाज तो इस समय केवल उन्हीं बगला-भगतों को
परम धार्मिक समझता है!
अमरनाथ- तो फिर अब मैं
ऐसे समाज को दूर ही से हाथ जोड़ता हूँ।
हीरामणि- तो क्या ये
लडक़ी-लड़के क्वांरे ही रहेंगे?
|