कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
सारा संसार घड़ी-घड़ी-भर
पर, पल-पल-भर
पर, नवीन-सा प्रतीत होता है और इससे उस विश्वयन्त्र को बनाने वाले
स्वतन्त्र की बड़ी भारी निपुणता का पता लगता है; क्योंकि नवीनता की यदि
रचना न होती, तो मानव-समाज को यह संसार और ही तरह का भासित होता। फिर उसे
किसी वस्तु की चाह न होती, इतनी तरह के व्यावहारिक पदार्थों की कुछ भी
आवश्यकता न होती। समाज, राज्य और धर्म के विशेष परिवर्तन-रूपी पट में इसकी
मनोहर मूर्ति और भी सलोनी देख पड़ती है। मनुष्य बहुप्रेमी क्यों हो जाता
है? मानवों की प्रवृत्ति क्यों दिन-रात बदला करती है? नगर-निवासियों को
पहाड़ी घाटियाँ सौन्दर्यमयी प्रतीत होती हैं? विदेश-पर्यटन में क्यों
मनोरंजन होता है? मनुष्य क्यों उत्साहित होता है? इत्यादि प्रश्नों के
उत्तर में केवल यही कहा जा सकता है कि नवीनता की प्रेरणा!
नवीनता वास्तव में ऐसी ही
वस्तु है कि जिससे मदन को भारत से सीलोन तक
पहुँच जाना कुछ कष्टकर न हुआ।
विशाल
सागर के वक्षस्थल पर दानव-राज की तरह वह जहाज अपनी चाल और उसकी शक्ति दिखा
रहा है। उसे देखकर मदन को द्रौपदी और पाण्डवों को लादे हुए घटोत्कच का
ध्यान आता था।
उत्ताल तरंगों की
कल्लोल-माला अपना अनुपम दृश्य
दिखा रही है। चारों ओर जल-ही-जल है, चन्द्रमा अपने पिता की गोद में
क्रीड़ा करता हुआ आनन्द दे रहा है। अनन्त सागर में अनन्त आकाश-मण्डल के
असंख्य नक्षत्र अपने प्रतिबिम्ब दिखा रहे हैं।
मदन तीन-चार बरस
में युवक हो गया है। उसकी भावुकता बढ़ गयी थी। वह समुद्र का सुन्दर दृश्य
देख रहा था। अकस्मात् एक प्रकाश दिखायी देने लगा। वह उसी को देखने लगा।
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