कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
तो मुझसे भी आप वहाँ चलने
के लिये कहते हैं?
इसमें तुम्हारी हानि ही
क्या है?
(यज्ञोपवीत दिखाकर) इसकी
ओर भी तो ध्यान कीजिये!
तो क्या समुद्र-यात्रा
तुम नहीं कर सकते?
सुना है कि वहाँ जाने से
धर्म नष्ट हो जाता है!
क्यों? जिस तरह तुम यहाँ
भोजन बनाते हो, उसी तरह वहाँ भी बनाना।
जहाज पर भी चढऩा होगा!
उसमें हर्ज ही क्या है?
लोग गंगासागर और जगन्नाथजी जाते समय जहाज पर नहीं
चढ़ते?
मदन
अब निरुत्तर हुआ; किन्तु उत्तर सोचने लगा। इतने ही में उधर से मृणालिनी
आती हुई दिखायी पड़ी। मृणालिनी को देखते ही उसके विचाररूपी मोतियों को
प्रेम-हंस ने चुग लिया और उसे उसकी बुद्धि और भी भ्रमपूर्ण जान पड़ने लगी।
मृणालिनी ने पूछा- क्यों
मदन, तुम बाबा के साथ न चलोगे?
जिस
तरह वीणा की झंकार से मस्त होकर मृग स्थिर हो जाता है, अथवा मनोहर वंशी की
तान से झूमने लगता है, वैसे ही मृणालिनी के मधुर स्वर में मुग्ध मदन ने कह
दिया- क्यों न चलूँगा।
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