कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
इसी तरह की बहुत-सी बातें
होती रहीं, और फिर दूसरे दिन किशोरनाथ मृणालिनी
को साथ लेकर अपने घर गया।
अमरनाथ
बाबू की अवस्था बड़ी शोचनीय है। वह एक प्रकार से मद्य के नशे में चूर रहते
हैं। काम-काज देखना सब छोड़ दिया है। अकेला किशोरनाथ काम-काज सँभालने के
लिए तत्पर हुआ, पर उसके व्यापार की दशा अत्यन्त शोचनीय होती गयी, और उसके
पिता का स्वास्थ्य भी बिगड़ चला। क्रमश: उसको चारों ओर अन्धकार दिखाई देने
लगा।
संसार की कैसी विलक्षण
गति है! जो बाबू अमरनाथ एक समय सारे
सीलोन में प्रसिद्ध व्यापारी गिने जाते थे, और व्यापारी लोग जिनसे सलाह
लेने के लिए तरसते थे, वही अमरनाथ इस समय कैसी अवस्था में हैं! कोई उनसे
मिलने भी नहीं आता!
किशोरनाथ एक दिन अपने
आफिस में बैठा कार्य
देख रहा था। अकस्मात् मृणालिनी भी उसी स्थान में आ गयी और एक कुर्सी
खींचकर बैठ गयी। उसने किशोर से कहा- क्यों भैया, पिताजी की कैसी अवस्था
है? काम-काज की भी दशा अच्छी नहीं है, तुम भी चिन्ता से व्याकुल रहते हो,
यह क्या है?
किशोरनाथ- बहन कुछ न
पूछो, पिताजी की अवस्था तो तुम
देख ही रही हो। काम-काज की अवस्था भी अत्यन्त शोचनीय हो रही है। पचास लाख
रुपये के लगभग बाजार का देना है; और आफिस का रुपया सब बाजार में फँस गया
है, जो कि काम देखे-भाले बिना पिताजी की अस्वस्थता के कारण दब-सा गया है।
इसी सोच में बैठा हुआ हूँ कि ईश्वर क्या करेंगे!
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