कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
|
0 |
जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
मृणालिनी
भयातुर हो गयी। उसके नेत्रों से आँसुओं की धारा बहने लगी। किशोर उसे
समझाने लगा; फिर बोला-केवल एक ईमानदार कर्मचारी अगर काम-काज की देख-भाल
किया करता, तो यह अवस्था न होती। आज यदि मदन होता, तो हम लोगों की यह दशा
न होती।
मदन का नाम सुनते ही
मृणालिनी कुछ विवर्ण हो गयी और उसकी
आँखों में आँसू भर आये। इतने में दरबान ने आकर कहा- सरकार, एक रजिस्ट्री
चिठ्ठी मृणालिनी देवी के नाम से आयी है, डाकिया बाहर खड़ा है।
किशोर ने कहा- बुला लाओ।
किशोर
ने वह रजिस्ट्री लेकर खोली। उसमें एक पत्र और एक स्टाम्प का कागज था।
देखकर किशोर ने मृणालिनी के आगे फेंक दिया। मृणालिनी ने फिर वह पत्र किशोर
के हाथ में देकर पढऩे के लिये कहा। किशोर पढऩे लगा।
मृणालिनी!
आज
मैं तुमको पत्र लिख रहा हूँ। आशा है कि तुम इसे ध्यान देकर पढ़ोगी। मैं एक
अनजाने स्थान का रहनेवाला कंगाल के भेष में तुमसे मिला और तुम्हारे परिवार
में पालित हुआ। तुम्हारे पिता ने मुझे आश्रय दिया, और मैं सुख से तुम्हारा
मुख देखकर दिन बिताने लगा। पर दैव को वह भी ठीक न जँचा! अच्छा, जैसी उसकी
इच्छा! पर मैं तुम्हारे परिवार को सदा स्नेह की दृष्टि से देखता हूँ। बाबू
अमरनाथ के कहने-सुनने का मुझे कुछ ध्यान भी नहीं है, मैं उसे आशीर्वाद
समझता हूँ। मेरे चित्त में उसका तनिक भी ध्यान नहीं है, पर केवल
पश्चात्ताप यह है कि मैं उनसे बिना कहे-सुने चला आया। अच्छा, इसके लिए
उनसे क्षमा माँग लेना और भाई किशोरनाथ से भी मेरा यथोचित अभिवादन कह देना।
|