कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
भयभीत
बालक बाहर चला आ रहा था! शराबी ने उसके छोटे से सुन्दर गोरे मुँह को देखा।
आँसू की बूँदें ढुलक रही थीं। बड़े दुलार से उसका मुँह पोंछते हुए उसे
लेकर वह फाटक के बाहर चला आया। दस बज रहे थे। कड़ाके की सर्दी थी। दोनों
चुपचाप चलने लगे। शराबी की मौन सहानुभूति को उस छोटे-से सरल हृदय ने
स्वीकार कर लिया। वह चुप हो गया। अभी वह एक तंग गली पर रुका ही था कि बालक
के फिर से सिसकने की उसे आहट लगी। वह झिड़ककर बोल उठा-
अब क्या रोता है रे
छोकरे?
मैंने दिन भर से कुछ खाया
नहीं।
कुछ खाया नहीं; इतने बड़े
अमीर के यहाँ रहता है और दिन भर तुझे खाने को
नहीं मिला?
यही
कहने तो मैं गया था जमादार के पास; मार तो रोज ही खाता हूँ। आज तो खाना ही
नहीं मिला। कुँवर साहब का ओवरकोट लिए खेल में दिन भर साथ रहा। सात बजे
लौटा, तो और भी नौ बजे तक कुछ काम करना पड़ा। आटा रख नहीं सका था। रोटी
बनती तो कैसे! जमादार से कहने गया था! भूख की बात कहते-कहते बालक के ऊपर
उसकी दीनता और भूख ने एक साथ ही जैसे आक्रमण कर दिया, वह फिर हिचकियाँ
लेने लगा।
शराबी उसका हाथ पकड़कर
घसीटता हुआ गली में ले चला। एक
गन्दी कोठरी का दरवाजा ढकेलकर बालक को लिए हुए वह भीतर पहुँचा। टटोलते हुए
सलाई से मिट्टी की ढेबरी जलाकर वह फटे कम्बल के नीचे से कुछ खोजने लगा। एक
पराठे का टुकड़ा मिला! शराबी उसे बालक के हाथ में देकर बोला- तब तक तू इसे
चबा, मैं तेरा गढ़ा भरने के लिए कुछ और ले आऊँ-सुनता है रे छोकरे! रोना
मत, रोयेगा तो खूब पीटूँगा। मुझसे रोने से बड़ा बैर है। पाजी कहीं का,
मुझे भी रुलाने का....
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