कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
सरकार!
बूढ़ों से सुने हुए वे नवाबी के सोने-से दिन, अमीरों की रंग-रेलियाँ,
दुखियों की दर्द-भरी आहें, रंगमहलों में घुल-घुल कर मरनेवाली बेगमें,
अपने-आप सिर में चक्कर काटती रहती हैं। मैं उनकी पीड़ा से रोने लगता हूँ।
अमीर कंगाल हो जाते हैं। बड़े-बड़ों के घमण्ड चूर होकर धूल में मिल जाते
हैं। तब भी दुनिया बड़ी पागल है। मैं उसके पागलपन को भुलाने के लिए शराब
पीने लगता हूँ-सरकार! नहीं तो यह बुरी बला कौन अपने गले लगाता!
ठाकुर
साहब ऊँघने लगे थे। अँगीठी में कोयला दहक रहा था। शराबी सरदी से ठिठुरा जा
रहा था। वह हाथ सेंकने लगा। सहसा नींद से चौंककर ठाकुर साहब ने कहा- अच्छा
जाओ, मुझे नींद लग रही है। वह देखो, एक रुपया पड़ा है, उठा लो। लल्लू को
भेजते जाओ।
शराबी रुपया उठाकर धीरे
से खिसका। लल्लू था ठाकुर
साहब का जमादार। उसे खोजते हुए जब वह फाटक पर की बगलवाली कोठरी के पास
पहुँचा, तो सुकुमार कण्ठ से सिसकने का शब्द सुनाई पड़ा। वह खड़ा होकर
सुनने लगा।
तो सूअर, रोता क्यों है?
कुँवर साहब ने दो ही लातें
लगाई हैं! कुछ गोली तो नहीं मार दी? कर्कश स्वर से लल्लू बोल रहा था;
किन्तु उत्तर में सिसकियों के साथ एकाध हिचकी ही सुनाई पड़ जाती थी। अब और
भी कठोरता से लल्लू ने कहा- मधुआ! जा सो रह, नखरा न कर, नहीं तो उठूँगा तो
खाल उधेड़ दूँगा! समझा न?
शराबी चुपचाप सुन रहा था।
बालक की सिसकी और बढऩे लगी। फिर उसे सुनाई पड़ा-
ले, अब भागता है कि नहीं? क्यों मार खाने पर तुला है?
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