कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
बालक अँगड़ाई ले रहा
था। वह उठ बैठा। शराबी ने कहा- ले उठ, कुछ खा ले, अभी रात का बचा हुआ है;
और अपनी राह देख! तेरा नाम क्या है रे?
बालक ने सहज हँसी हँसकर
कहा- मधुआ! भला हाथ-मुँह भी न धोऊँ। खाने लगूँ? और
जाऊँगा कहाँ?
आह!
कहाँ बताऊँ इसे कि चला जाय! कह दूँ कि भाड़ में जा; किन्तु वह आज तक दु:ख
की भठ्ठी में जलता ही तो रहा है। तो... वह चुपचाप घर से झल्लाकर सोचता हुआ
निकला - ले पाजी, अब यहाँ लौटूँगा ही नहीं। तू ही इस कोठरी में रह!
शराबी
घर से निकला। गोमती-किनारे पहुँचने पर उसे स्मरण हुआ कि वह कितनी ही बातें
सोचता आ रहा था, पर कुछ भी सोच न सका। हाथ-मुँह धोने में लगा। उजली धूप
निकल आई थी। वह चुपचाप गोमती की धारा को देख रहा था। धूप की गरमी से सुखी
होकर वह चिन्ता भुलाने का प्रयत्न कर रहा था कि किसी ने पुकारा- भले आदमी
रहे कहाँ? सालों पर दिखाई पड़े। तुमको खोजते-खोजते मैं थक गया।
शराबी ने चौंककर देखा। वह
कोई जान-पहचान का तो मालूम होता था; पर कौन है,
यह ठीक-ठीक न जान सका।
उसने
फिर कहा- तुम्हीं से कह रहे हैं। सुनते हो, उठा ले जाओ अपनी सान धरने की
कल, नहीं तो सड़क पर फेंक दूँगा। एक ही तो कोठरी, जिसका मैं दो रुपये
किराया देता हूँ, उसमें क्या मुझे अपना कुछ रखने के लिए नहीं है?
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