कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
ओहो?
रामजी, तुम हो भाई, मैं भूल गया था। तो चलो, आज ही उसे उठा लाता हूँ।-
कहते हुए शराबी ने सोचा- अच्छी रही, उसी को बेचकर कुछ दिनों तक काम चलेगा।
गोमती नहाकर, रामजी, पास
ही अपने घर पर पहुँचा। शराबी की कल देते हुए उसने
कहा- ले जाओ, किसी तरह मेरा इससे पिण्ड छूटे।
बहुत
दिनों पर आज उसको कल ढोना पड़ा। किसी तरह अपनी कोठरी में पहुँचकर उसने
देखा कि बालक बैठा है। बड़बड़ाते हुए उसने पूछा- क्यों रे, तूने कुछ खा
लिया कि नहीं? भर-पेट खा चुका हूँ, और वह देखो तुम्हारे लिए भी रख दिया
है। कह कर उसने अपनी स्वाभाविक मधुर हँसी से उस रूखी कोठरी को तर कर दिया।
शराबी एक क्षण चुप रहा। फिर चुपचाप जल-पान करने लगा। मन-ही-मन सोच रहा था-
यह भाग्य का संकेत नहीं, तो और क्या है? चलूँ फिर सान देने का काम चलता
करूँ। दोनों का पेट भरेगा। वही पुराना चरखा फिर सिर पड़ा। नहीं तो, दो
बातें किस्सा-कहानी इधर-उधर की कहकर अपना काम चला ही लेता था? पर अब तो
बिना कुछ किये घर नहीं चलने का। जल पीकर बोला- क्यों रे मधुआ, अब तू कहाँ
जायगा?
कहीं नहीं।
यह लो, तो फिर क्या यहाँ
जमा गड़ी है कि मैं खोद-खोद कर तुझे मिठाई खिलाता
रहूँगा।
तब कोई काम करना चाहिए।
करेगा?
जो कहो?
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