कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
साजन कभी-कभी रमला झील की
फेरी लगाता। वह झील कई कोस में थी। जहाँ स्थल-पथ का पहाड़ी की बीहड़
शिलाओं से अन्त हो जाता, वहाँ वह तैरने लगता। बीच-बीच में उसने दो-एक
स्थान विश्राम के लिए बना लिये थे; वह स्थान और कुछ नहीं; प्राकृतिक
गुहायें थीं। उसने दक्षिण की पहाड़ी के नीचे पहुँचकर देखा, एक किशोरी जल
में पैर लटकाये बैठी है।
वह आश्चर्य और क्रोध से
अपने होंठ चबाने
लगा; क्योंकि एक गुफा वहीं पर थी। अब साजन क्या करे! उसने पुष्ट भुजा
उठाकर दूर से पूछा- ”तुम कौन? भागो।”
रमला एक मनुष्य की आकृति
देखते ही प्रसन्न हो गई, हँस पड़ी। बोली- “मैं
हूँ, रमला!”
“रमला! रमला रानी।”
“रानी नहीं, रमला।”
“रमला नहीं, रानी कहो,
नहीं पीटूँगा, मेरी रानी!”- कहकर साजन झील की ओर
देखने लगा।
“अच्छा, अच्छा, रानी! तुम
कौन हो?”
“मैं साजन, रानी का
सहचर।”
“तुम सहचर हो? और मैं
यहाँ आई हूँ, तुम मेरा कुछ सत्कार नहीं करते?”-
हँसोड़ रमला ने कहा।
“आओ तुम!”- कहकर विस्मय
से साजन उस किशोरी की ओर देखने लगा।
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